आंखों में मोतियाबिंद कभी नहीं होगा आज से करें ये काम:-मोतियाबिंद के मामले अब कम उम्र में भी सामने आ रहे हैं। आज भी उपचार में देरी और गलत धारणाओं के कारण मोतियाबिंद उस अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है, जिसे रोका जा सकता है। मोतियाबिंद के पहले से कहीं तेज और सफल इलाज से जुड़े अहम पहलुओं की जानकारी दे रही हैं|
आंखों में मोतियाबिंद न आए
वैश्विक आंकड़ों की मानें तो विश्व में दृष्टिहीनता (जिसकी रोकथाम संभव है) के 33 प्रतिशत मामले तियांविंद के कारण होते हैं, जबकि भारत में यह आंकड़ा 66 प्रतिशत है। देश में हर साल मोतियाबिंद के 20 लाख नए मामले सामने आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार चिंता की बात यह है कि मोतियाबिंद के केवल 17 फीसदी लोगों को ही उचित इलाज मिल पाता है। मोतियाबिंद का एकमात्र उपचार सर्जरी है, जिसमें देरी नहीं करनी चाहिए।
क्या है मोतियाबिंद की समस्या
हमारी आंखों में पारदर्शी लेंस होते हैं, जो रोशनी और छवियों को रेटिना पर फोकस करने में मदद करते हैं। रेटिना पर स्पष्ट छवि अंकित हो, इसके लिए लेंस का पारदर्शी होना जरूरी है। कई कारणों से जब लेंस पर धब्बे आ जाते हैं और वह धुंधला हो जाता है, तो हम साफ नहीं देख पाते। इसे मोतियाबिंद या सफेद मोतिया कहते हैं। नजर धुंधली होने से मोतियाबिंद से पीड़ित लोगों को पढ़ने, नजर का काम करने, रात में गाड़ी चलाने में समस्या आती है।
उम्र बढ़ने के साथ आंखों के लेंस में जो प्रोटीन होता है, वह सफेद पड़ने लगता है, जिससे लेंस धुंधला हो जाता है। इसके अलावा डायबिटीज, सूरज के तेज प्रकाश में अधिक रहना, मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास, आंखों में चोट लगना या सूजन, कोर्टिस्टेरॉइड दवाओं का लंबे समय तक सेवन, अधिक धूम्रपान और शराब पीना भी मोतियाबिंद के विकसित होने का खतरा बढ़ा देते हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) में छपे अध्ययन के अनुसार, खानपान की गलत आदतें ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस व रक्त में शुगर को बढ़ा सकती हैं। इस कारण युवाओं की आंखों की उम्र उनकी असल उम्र से ज्यादा तेजी से बढ़ जाती है और लेंस के धुंधला पड़ने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। अस्वस्थ जीवनशैली के कारण कम उम्र में आंखों की समस्याएं बढ़ी है।
शुरूआती लक्षणों की पहचान
मोतियाबिंद धीरे-धीरे विकसित होता है। कई वार लंबे समय तक स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई देते। कुछ लक्षण इस प्रकार हैं-
- दृष्टि धुंधली होना
- बुजुर्गों में निकट
- दृष्टि दोष बढ़ना रंगों को पहचानने व रात में गाड़ी चलाने में दिक्कत आना
- चश्मे का नंबर अचानक बढ़ना
- आंखें चैंधियाना व चीजे दो-दो दिखना
कैसे करें आंखों का बचाव
इस बारे में कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है कि कैसे मोतियाबिंद को रोका जा सकता है। पर विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ सावधानियां आंखों से जुड़ी समस्याएं बढ़ने से रोकती हैं-
- रंग-बिरंगे फल व सब्जियों का सेवन करें, ये एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होती हैं।
- सही नंबर का चश्मा पहनें। बाहर धूप का चश्मा पहनकर जाएं, इससे अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव होता है।
- डायबिटीज बउच्च रक्तचाप से आंखों पर दबाव बढ़ता है।
- डायबिटीज, बीपी की नियमित जांच कराएं व इसे काबू में रखें।
- चालीस के बाद नियमित आंखों की जांच कराएं।
- अपना वजन सामान्य बनाए रखें।
- धूम्रपान व अल्कोहल से परहेज करें।
- फ्राइड एंड प्रोसेस्ड फूड्स, लाल मांस, मैदा, नमक और चीनी अधिक न खाएं।
- घर में प्रकाश व्यवस्था ठीक रखें।
कब कराएं सर्जरी
कच्चे मोतिये को तोड़ना आसान होता है। मोतिया पकने का इंतजार न करें। अधिकतर मामलों में दोनों आंखों की सर्जरी एक साथ नहीं की जाती, पर नई तकनीकों ने दोनों आंखों की सर्जरी एक साथ करना भी संभव बना दिया है।
उपचार के नए विकल्प
मोतियाबिंद के उपचार के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। जिसमें आंख में धुंधले प्राकृतिक लेंस के स्थान पर नया कृत्रिम लेंस लगाया जाता है। इनको इंट्रा ऑक्युलर लेंस कहते हैं। सर्जरी के बाद मरीज को साफ दिखता है। कई बार पढ़ने या नजर का काम करने के लिए चश्मा पहनने की जरूरत पड़ सकती है।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में मोतियाबिंद सर्जरी रिस्टोरेटिव से रिफ्रैक्टिव सर्जरी में बदल चुकी है, यानी धीरे-धीरे चश्मे पर निर्भरता भी समाप्त की जा रही है। कई तरह की सर्जरी चलन में हैं, जिसका चुनाव डॉक्टर जरूरत के अनुसार करते हैं। रोबोटिक या फेमटोसेकंड कैटरेक्ट सर्जरी में लेजर बीम इस्तेमाल करते हैं। इसमें टांकें नहीं लगाए जाते। यह दर्द रहित होती है। जटिल मामलों व जिनकी पुतलियां छोटी हैं, उनमें जेप्टो कैप्सूलोटॉमी डिवाइस का भी इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसे चुनें लेंस
आमतौर पर डॉक्टर मरीज की जरूरत और स्थिति के आधार पर इस संबंध में सलाह देते हैं। आधुनिक लेंस से हम कई तरह की जटिलताओं को दूर किया जा सकता है-
मोनोफोकल इंट्राऑक्यूलर लेंस
इंट्राऑक्यूलर लेंस (आईओएल) स्थायी, कृत्रिम लेंस होते हैं, जो दूर और पास, दोनों नजरों को ठीक कर सकते हैं। इन लेंस का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
मल्टीफोकल इंट्राऑक्यूलर लेंस
यह प्रीमियम लेंस माने जाते हैं। मल्टीफोकल होने के कारण कुछ लोगों को इस लेंस के साथ तालमेल बैठाने में समय लग सकता है।
एक्सटेंडेड डेप्थ ऑफ फोकस
(ईडीओएफ) लेंस इंडीओएफ लेंस, मल्टीफोकल लेंस का एक उन्नत रूप है। टॉरिक इंट्रा ऑकुलर लेंसः यह लेंस कॉर्निया के आकार की अनियमितता ठीक करने में सहायता करते हैं।
अकोमोडेटिंग इंट्राऑकुलर लेंस
इन खास लेंस को आंख के अंदर गति करने के लिए डिजाइन किया गया है, ताकि आंख की मांसपेशियों का दबाव कम हो।
लाइट एडजेस्टेबल इंट्राऑकुलर लेंस
यह एकमात्र लेंस हैं, जिन्हें सर्जरी के बाद भी समायोजित किया जा सकता है। यह उनके लिए बेहतरीन विकल्प है, जिनकी पहले लेसिक जैसी सर्जरी हो चुकी है।
मोतियाबिंद सर्जरी के बाद की देखभाल
क्या कर?
- समय पर डॉक्टर द्वारा बताई आई ड्रॉप्स डालें।
- सर्जरी के बाद नहाने या आंखों पर पानी लगाने की जल्दबाजी न करें। 10-15 दिन का अंतराल रखें।
- सुरक्षा कवच या चश्मा पहनें। टीवी देखना, पढ़ना-लिखना और हल्का व्यायाम डॉक्टर की सलाह से शुरू करें।
- सोते समय आंखों का सुरक्षा कवच पहनें। जिस आंख की सर्जरी हुई है, उस करवट से न सोएं।
क्या न करें?
- ऑपरेशन वाली आंख को रगड़े नहीं।
- धूम्रपान न करें।
- आंखों को न छुएं। मेकअप न लगाएं। इससे संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
- भारी वजन न उठाएं।
- कम-से-कम तीन हफ्तों तक तैराकी न करें।
- सर्जरी के बाद कुछ दिनों तक रात में गाड़ी न चलाएं। तेज शारीरिक गतिविधि न करें।
- आंखों में दर्द, लाली या धुंधला दिखने पर पानी आए तो डॉक्टर से मिलें।
खानपान पर ध्यान देना जरूरी
नेचर नामक जर्नल में छपे लेख के अनुसार, मोतियाबिंद की सर्जरी के बाद पोषक भोजन खाने से हीलिंग तेज होती है। सूजन व संक्रमण से बचाव होता है। आहार में इन्हें शामिल करें-
- प्रोटीन व विटामिन सी युक्त चीजें खाएं। हरी सब्जियां जैसे गाजर, पालक, मेथी, बथुआ आदि खाएं। पानी व दूसरे तरल पोषक खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में लें।
- जिंक से भरपूर चीजें जैसे सी फूड्स, चिकन, फलियां, दालें, कद्दु, दूध, दही आदि खाएं।
- ओमेगा 3 फैटी एसिड युक्त (मछली, सी-फूड्स, सुखे मेवे, बीज आदि) खाद्य पदार्थ।
- प्रोसेस्ड व रिफाइंड चीजें, तली-भुनी चीजें, शराब और धुम्रपान से दूरी बनाए रखें।
भारी वजन न उठाएं
मोतियाबिंद सर्जरी के दौरान लगाए गए चीरे नाजुक होते हैं। ज्यादा झुकने, झटका लगने या भारी वजन उठाने से आंख के अंदर दबाव बढ़ सकता है, रिकवरी देर से होती है। आंखों में लगाए नए लेंस को जमने में समय लगता है, तेज शारीरिक गतिविधि उसे हिला सकती है। रक्तस्राव या सूजन का खतरा बढ़ सकता है। डॉक्टर शुरुआती दो से तीन दिन बिल्कुल भी झुकने या सामान उठाने से मना करते हैं।
डॉक्टर से संपर्क करें अगर
आमतौर पर कृत्रिम लेंस लगने के बाद दोबारा सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन कुछ मामलों में दूसरी सर्जरी या सुधार के अन्य विकल्पों की जरूरत पड़ जाती है। लगातार धुंधला दिखाई दे रहा है, आंख में दर्द, प्रकाश के प्रति असमान्य संवेदनशीलता हो रही है, आंखें चुंधिया रही हैं, सूजन के कारण भारीपन है, तो डॉक्टर से मिलें। कुछ मामलों में लेंस को निकालकर नया लेंस लगाया जाता है।
निष्कर्ष
मोतियाबिंद बढ़ती उम्र का सामान्य कारण है, लेकिन आधुनिक जीवनशैली, गलत आदतें और पोषण की कमी युवा लोगों में भी इसे बढ़ा दे रही है।
यदि आप आज से ही सही खानपान, UV सुरक्षा, नियमित eye check-up और आंखों की स्वच्छता को अपना लेते हैं, तो मोतियाबिंद होने की संभावना काफी कम हो जाती है।
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