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भारत में ग्लोबल ब्रांड की ये ये कार मचा रही है धुम | वो भी इतने कम दाम में

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By arcarrierpoint

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भारत में ग्लोबल ब्रांड की ये ये कार मचा रही है धुम | वो भी इतने कम दाम में

भारत में ग्लोबल ब्रांड की ये ये कार मचा रही है धुम | वो भी इतने कम दाम में:-हम सिर्फ कारें नहीं बना रहे, हम दुनिया को बदलने की कोशिश कर रहे हैं।

टेस्ला ने इसी हफ्ते अपनी बहुप्रतीक्षित कार भारत में लॉन्च कर दी। इससे पहले बीते दो दशक के दौरान फोर्ड, जीएम और फिएट जैसे अनेक ग्लोबल ब्रांड्स भारत में नाकाम हो चुके हैं।

भा दुनिया का वैसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल रत आज अमेरिका और चीन के बाद बाजार है। यही वजह है कि कार निर्माताओं को भारत हमेशा लुभाते आया है। दुनियाभर की अनेक कंपनियों ने यहां अपने उत्पाद लॉन्च किए। हालांकि इनमें से कई विदेशी ब्रांड्स, खासकर अमेरिकी और यूरोपीय फेल हो गए और उन्हें अपना कारोबार समेटकर जाना पड़ा।

अमेरिकी और यूरोपीय ब्रांड्स के बनिस्बत जापान और कोरियाई ब्रांड्स अपेक्षाकृत सफल रहे। अब जबकि अमेरिका के एक और ग्लोबल बांड टेस्ला ने भी यहां अपनी कार (मॉडल वाई) लॉन्च कर दी है. उसके भारत में संभावित प्रदर्शन पर सबकी नजरें टिक गई हैं। वैसे टेस्ला के बारे में अभी कुछ भी अनुमान लगाना जल्दबाजी होगा, लेकिन यह जानना दिलचस्प रहेगा कि भारत में कुछ विदेशी ब्रांड्स क्यों सफल हुए और कुछ बयों विफल।

किसी भी प्रोडक्ट की सफलता के लिए सबसे जरूरी है कि वह मार्केट फिट हो, यानी वह उस बाजार के उपभोक्ताओं की जरूरतों और प्राथमिकताओं के अनुसार बला हो। ऐसा न होने पर उसकी विफलता तय रहती है। जापानी और कोरियाई कंपनियां (जैसे सुजुकी, होंडा, टोयोटा, हुंडई, किया) मार्केट फिट रहीं, जबकि अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों के साथ ऐसा नहीं हुआ।

आप बाजार की कितनी सुनते हैं। अमेरिकी यूरोपीय कंपनियों के हेड क्वार्टर ने बाजार की नहीं सुनी और लोकलाइज पर ध्यान नहीं दिया। हमारे यहां फेल होने वाले बड़े ब्रांड्स में फोर्ड और जनरल मोटर्स (जीएम) के नाम लिए जा सकते हैं। ये दोनों अमेरिकी कंपनियां हैं। तीसरी बड़ी कंपनी फिएट (इटली) है।

JATO डायनामिक्स एक प्रमुख वैश्विक ऑटोमोटिव मार्केट इंटेलिजेंस कंपनी है, जो वाहन उद्योग से संबंधित विश्लेषण मुहैया करवाती है। मुख्यालय ब्रिटेन में है।

जापानी और कोरियाई कंपनियां पहले से ही छोटी और किफायती कारें बना रही थीं, जो भारत के बाजार की मांग के अनुरूप था। चूंकि वे छोटी कारें बना रही थी, इसलिए उनके लिए 4-मीटर नियम’ में फिट होना भी आसान था। इस नियम के अनुस्वर, गदि कोई पैसेंजर कार 4 मीटर से छोटी हो और उसमें 1.2 लीटर तक का पेट्रोल इंजन (या 1.5 लीटर तक का डीजल इंजन) हो, तो उस पर कम टैक्स लगता है।

इस तरह जापान-कोरियाई कंपनियों को टैक्स का फायदा मिला और इससे वे किफायती कारें बना सकीं। इससे उन्हें बाजार पर कब्जा करने में आसानी हुई। इन कंपनियों ने समय रहते सर्विस इनफ्रॉस्ट्रक्चर भी अच्छा खड़ा किया, जिससे ग्राहकों में भरोसा पैदा हुआ। केवल दो कंपनियों फेल हुई। जापानी कंपनी मित्सुबिशी को इसलिए जाना पड़ा, क्योंकि वह बड़ी कारों के साथ भारत में उतरी थी। कोरियाई कंपनी देवू को वैश्विक स्तर पर गड़बड़ियों की वजह से भारत से जाना पड़ा। वह दिवालिया हो गई थी।

अमेरिकी और यूरापीय कंपनियां एक अलग तरह के माहौल में काम करती हैं। वे अमूमन छोटी कारें नहीं बनाती हैं। भारत के हिसाब से देखें तो मार्केट फिट के पैमाने पर सबसे बड़ी खामी तो यहीं हो गई। इनके उत्पाद पहले से ही महंगे थे और फिर ‘4-मीटर निगम का पालन न करने की वजह से टैक्स के फागदे भी नहीं मिले। इससे भी वे अपनी कारों के दाम कम नहीं कर सकी।

इन कंपनियों के तमाम मॉडलों के माइलेज भी बहुत कम थे। पाइलेज किसी ऑटोमोबाइल प्रोडक्ट को चुनने का भारतीय उपभोक्ताओं के बीच एक अहम फैक्टर होता है। सर्विस व ऑफ्टर सेल्स के बुनियादी ढांचे पर भी इन्होंने काम नहीं किया। फिर जब शुरुआती मॉडल विफल हुए तो कंपनियों के हेडऑफिस ने नए निवेश से दूरी बना ली। नतीजा ये हुआ कि भारत में उनके ऑपरेशन धीरे-धीरे बंद होते गए। यूरोप की एक और बड़ी कंपनी बॉक्सवैगन (जर्मनी) भी भारत में इन्हीं चुनौतियों से जुड़ा रही है।

यह तो स्पष्ट है कि टेस्ला प्रीमियम सेगमेंट को टारगेट कर रही है। वह टिगोर या महिंद्रा इंबी या किसी भी अन्य ईवी से प्रतिस्पर्धा में नहीं है। उसकी प्रतिस्पर्धा ऑडी और बीएमडब्ल्यू की कारों से है। उसने भारत में जो मॉडल लॉन्च किया है, उसकी कीमत ऑडी और बीएमडब्ल्यू से करीब 20 फीसदी कम है। तो इससे यह भी संकेत मिलते हैं कि वह यहां प्रतिस्पर्धा करने उतरी है।

इस बात की उम्मीद न करें कि आने वाले सालों में 20 लाख रु. में टेस्ला मिल जाएगी। टेक्नोलॉजी में कोई समझौता करके वह सस्ती कार नहीं बनाएगी। हां, लोकल मैन्युफैक्बरिंग करने से उसे टैक्स बगैरह में फायदा मिल सकता है और इससे उसकी कारों की कीमत कुछ कम हो सकती है। अगर सरकारी पॉलिसी अनुकूल रही तो उसकी लागत व कीमत थोड़ी और कम हो जाएगी।

टेस्ला सुपीरियर कार है। दिखने में भी बहुत शानदार और जनदार है। इन कारों की टेक्नोलॉजी का तो कोई जवाब ही नहीं है। यह आगे जाकर फुल सेल्फ ड्राइविंग कार लॉन्च करने की भी बात कर रही है। टेस्ला की एंट्री से भारत को खासकर इसलिए भी उत्साहित होना चाहिए कि इस तरह की टेक्नोलॉजी से रूबरू होकर शायद हमारे स्थानीय निर्माता भी कुछ नया करने के लिए प्रेरित हो सकें।

इसने सितंबर 2021 में भारत से अपना कारोबार समेट लिया था। हालांकि इसके ‘एंडेवर मॉडल को कुछ सफलता मिली, लेकिन फिगो एस्पायर जैसे मॉडल इसी श्रेणों में अन्य मॉडलों के साथ प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं सके।

वित्त वर्ष 2019 में इसने 93,000 वाहन बेचे, लेकिन वित्त वर्ष 2021 में वाहनों की विक्री लगभग 48,000 इकाइ‌यों तक आ गई। वित्त वर्ष 2022 में कंपनी ने 4,229 करोड़ रु. का नुकसान उसका घाटा लगभग 15 हार करोड़ रुपए तक पहुंच गया था।

यह भारत में शुरुआती सफलताओं के बाद फेल हो गई। सबसे लोकप्रिय मॉडल शेवरले रहा। लेकिन समय के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्धा और घटत्ती बिक्री के कारण जीएम ने 2017 में भारत में अपना संचालन बंद कर दिया।

वित्त वर्ष 2011-12 में इसकी लगभग 1,10,050 यूनिट्स बेची गई थी, लेकिन वित्त वर्ष 2016-17 में यह आंकड़ा गिरकर 26,000 यूनिट्स तक रह गया था। एसे 2008-09 से 2015-16 तक करीब 8,110 करोड़ रु. का नुकसान उठाना पड़ा।

इसने समय-समय पर कई मॉडल लॉन्य किए, जैसे उनो, पैलियो, पुंटी। लेकिन नए B56 सुख्खा मानकों के अनुरूप भारतीय बाजार के लिए अपने मॉडल्स अपडेट नहीं किए। इस कारण उसकी बिक्री लगातार कम होने लगी। 2019 के आखिर तक फिएट ने भारतीय बाजार में अपनी कारों की विक्री और उत्पादन बंद कर दिया।

1997 में फिएट उनो को 20 हजार बुकिंग के साथ रिकॉर्ड बनाया। 2001 में पैलियों के साथ भी बज बना रहा। 2012 के बाद से गिरावट आनी शुरू हुई 2016-17 में 5,665 वाहन ही बेच पाई, जो कुल मार्केट शेवर का महज 0.0018% था। 2019 में बिक्री 1,000 यूनिट्स से भी कम रही।

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