Matic and Inter Exam 90% अंक प्राप्त करना है यह नियम प्रतिदिन करें

Matic and Inter Exam 90% अंक प्राप्त करना है यह नियम प्रतिदिन करें

Matic and Inter Exam 90% अंक प्राप्त करना है यह नियम प्रतिदिन करें:–परीक्षा की तैयारी कैसे करनी चाहिए, इस बात को लेकर छात्र, अभिभावक और शिक्षकों के बीच हमेशा मतभेद की स्थिति देखी जा सकती है। सबके विचार और सोच अपने व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित होते हैं। इनमें क्या सही है और क्या गलत इस बात का निर्धारण कर पाना मुश्किल है।सबसे बड़ी बात यह भी है कि परीक्षा तैयारी का कोई निश्चित स्वरूप या फॉर्मूला भी नहीं होता है जिसके जरिए प्रभावी या निष्प्रभावी परीक्षा तैयारी के तरीकों का आकलन हो सके।

इस पोस्ट में क्या-क्या जानकारी है|

  • संगीत सुनते हुए पढ़ाई
  • शैक्षणिक कम्प्यूटर सी० डी०
  • बिना नोट्स सीधे पाठ्य-पुस्तक से तैयारी
  • बिना लिखे पढ़ाई की आदत
  • लेटकर पढ़ाई करने की आदत
  • सॉल्वड पेपर्स की बुक्स से तैयारी
  • दूसरों के बनाये नोट्स से तैयारी
  • हेल्प बुक्स या कुंजियों से पढ़ाई

संगीत सुनते हुए पढ़ाई

कई लोगों का मानना है कि इस प्रकार पढ़ने से ध्यान केन्द्रित करने में काफी मदद मिलती है। हो सकता है। कि यह बात कुछ फीसदी लोगों पर सच हो लेकिन इस बारे में वैज्ञानिक तर्क यही है कि दिमाग की ग्रहण करने या ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता असीमित नहीं होती है ऐसे में पढ़ाई के साथ संगीत से न सिर्फ सामान्य तौर पर पूरी तरह से ध्यान केन्द्रित नहीं हो पाता बल्कि भटकने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगता|

शैक्षणिक कम्प्यूटर सी० डी०

निस्संदेह इस प्रकार की सी० डी० कई बार कठिन विषयों को ग्राफिक्स या एनीमेशन के माध्यम से समझाने का काम बखूबी करती हैं। लेकिन परीक्षा तैयारी के अंतिम दौर में नोट्स या पाठ्य-पुस्तक, अपनी कक्षा कार्य की कॉपी के बजाय इस तरह की डिजिटल पढ़ाई करने से ज्यादा फायदा नहीं हो पाता। क्योंकि उनमें सही उत्तरों का फॉर्मेट नहीं होता है।

बिना नोट्स सीधे पाठ्य-पुस्तक से तैयारी

ऐसा युवा भी देखने में आते हैं जो नोट्स बनाने में विश्वास नहीं रखते और सीधे पाठ्य-पुस्तकों से एक या दो बार अध्यायों को पढ़ लेने को ही अंतिम तैयारी मानते हैं। इस प्रकार की पढ़ाई से दिमाग में कितना संजोकर रखा जा सकता है यह समझना कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है।

बिना लिखे पढ़ाई की आदत

कम्प्यूटर और इंटरनेट के इस डिजिटल युग में युवाओं की लिखने की आदत लगभग समाप्त हो चुकी है। ऐसे में सही तरह से प्रश्नों के उत्तर लिखना या नोट्स बनाना या रिविजन के दौरान लिखना नहीं के बराबर ही दिखाई पड़ता है। इस गलत प्रवृत्ति का भयंकर नुकसान उन्हें परीक्षा हॉल में लगातार 3 घंटे तक नहीं लिख पाने, लिखने में थकावट महसूस करने या

लेटकर पढ़ाई करने की आदत

लेटकर पढ़ने के लालच से बच पाना वाकई बड़ा कठिन है । कोई भी सहज ही कह सकता है कि इसमें बुराई क्या है? लेकिन देखने में यह आया है कि ऐसे में शारीरिक आलस्य के साथ मानसिक सुस्ती की खुमारी इतनी ज्यादा हावी होने लगती है कि नींद से आँखें भारी होने लगती हैं। जाहिर है कि घंटों की इस प्रकार की पढ़ाई के बावजूद दिमाग में कुछ भी याद नहीं हो पाता है।

सॉल्वड पेपर्स की बुक्स से तैयारी

युवाओं की यह भी धारणा होती है कि गत पाँच वर्षों में जितने भी प्रश्न पूछे गये हैं उनसे बाहर के प्रश्न संभव ही नहीं है। ऐसे में वे अपनी तैयारी को पूर्णत: पिछले पाँच वर्षों के हल किये प्रश्न-पत्र की पढ़ाई तक ही सीमित कर लेते हैं। यह सही है कि सवाल पिछले सालों के प्रश्नों से मिलते-जुलते ही होते हैं लेकिन इन किताबों में दिए गए उत्तर आमतौर से अपर्याप्त, अधूरे और भाषा की दृष्टि से अत्यन्त निष्प्रभावी होते हैं। ऐसे में सिर्फ इनके सहारे अच्छे अंक बटोरने बहुत मुश्किल होते हैं। अतः विद्यार्थीगण वर्षों से परखी हुई गाईड भारती बुक डिपो द्वारा प्रकाशित पर पूरा विश्वास कर सर्वोत्तम अंक प्राप्त कर सकते हैं।

दूसरों के बनाये नोट्स से तैयारी

साल भर अन्य अति आवश्यक कार्यकलापों में व्यस्त रहने वाले छात्रों को यह जबर्दस्त तरीका लगता है कि दूसरों द्वारा तैयार नोट्स पढ़कर परीक्षा की तैयारी कर ली जाए। बड़े ही स्मार्ट और सफलता की गारंटी वाले इस फॉर्मूले के कई नुकसान हो सकते हैं, जैसे कि नोट्स में अगर सिर्फ मुख्य बिन्दु ही दिए गए हों और उनमें विस्तार का अभाव हो या भाषा अथवा लिखावट अस्पष्ट हो या आधे-अधूरे नोट्स हों। जाहिर है, अंतिम समय में पुस्तकें पढ़कर यह सब दुरुस्त नहीं किया जा सकता है।

हेल्प बुक्स या कुंजियों से पढ़ाई

पढ़ाई से विमुख और अति व्यस्तता के शिकार अधिकांश छात्रों के लिए इस प्रकार की पुस्तकें मानों अमृत की भाँति होती हैं। उनका यह मानना है कि मात्र एक या दो दिन लगाकर इन पुस्तकों को पढ़कर चले जाने से संतोषजनक अंक आसानी से बटोरे जा सकते हैं। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि अब संतोषजनक अंक लाने या महज पास होने से गुजारा नहीं होने वाला। दूसरी बात यह कुंजियों की भाषा समझने में परीक्षकों को ज्यादा समय नहीं लगता और तब उनकी कलम से अंक और कंजूसी से निकलते हैं। विश्वसनीयता की कसौटी पर परखा हुआ उच्चस्तरीय गाईड और बाजार में उपलब्ध अन्य कुंजियों एवं हेल्प बुक्स आदि किताबों में एक साथ न उलझें ।

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