जिवन मे करना चाहते हैं तरक्की- खुद के साथ चीटिंग करना छोटी-सी बात लग सकती है, लेकिन ये आपके जीवन के हर हिस्से को धीरे-धीरे प्रभावित करती है और आपको कमजोर बनाती जाती है।
खुद को धोखा दे रहे हैं आप
चीटिंग यानी धोखा या छल। हम अक्सर इसे दूसरों के साथ की गई चालाकी, प्रतियोगिता में नियमों को तोड़ने या अपने फ़ायदे के लिए किसी को भ्रमित करने के रूप में देखते हैं। जैसे, किसी खेल में जीत के लिए ग़लत तरीका अपनाना या दूसरों को पीछे छोड़ने के लिए शॉर्टकट लेना।
लेकिन एक और तरह की चीटिंग होती है, जो हम अपने साथ करते हैं। क्रॉसवर्ड हल करते वक़्त हम इंटरनेट से उत्तर देख लेते हैं या खाना खाते समय कैलोरी का हिसाब नहीं रखते, तब हम किसी और को नहीं, बल्कि अपने आप को धोखा दे रहे होते हैं। शोध बताते हैं कि इस तरह का आत्म-छल हमारी मानसिकता और सोच पर गहरा असर डालता है।
लेकिन खुद को धोखा देते क्यों हैं?
मानव मन अक्सर असहज भावनाओं से बचना चाहता है, जैसे शर्म, अपराधबोध, असफलता का डर या आत्म-संदेह। ऐसे में, आत्म-छल एक तरह की मानसिक ढाल बन जाता है, जो हमें इन तकलीफदेह भावनाओं से बचाने का अस्थायी साधन देता है। अमेरिका की पेन स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सारा लाफ्रान डॉमर के एक शोध के अनुसार, लोग कई बार दूसरों के लिए नहीं, बल्कि खुद को अच्छा महसूस कराने के लिए खुद से ही धोखा करते हैं। हालांकि, दीर्घकाल में यही मानसिक प्रक्रिया हमें वास्तविकता का सामना करने से रोकती है और हमारे व्यक्तिगत विकास की राह में रुकावट बन जाती है।
इसमें हमारा ही नुकसान है
आत्म-छल एक गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे हमारे आत्मविश्वास, आत्मबोध और जीवन की गुणवत्ता को खोखला कर देती है।
जब हम सच्चाई को स्वीकार नहीं करते, तब गलत या अधूरी जानकमी के आधार पर निर्णय लेते हैं। इससे लगातार गलतियों होती हैं और हम एक झूठी दुनिया में जीने लगते हैं।
आत्म-छल हमें अपनी गलतियों की जिम्मेदारी लेने से रोकता है। हम दोष दूसरों पर डालते हैं, जिससे रिश्तों में विश्वास की कमी और दूरी आने लगी है।
जब हम खुद से झूठ बोलते हैं, तो भीतर से कहीं न कहीं हमारा मन जानता है कि हम सब्बाई से भाग रहे हैं। यह अंदरूनी इंद्र हमारे आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को धीरे-धीरे कमजोर करता है।
जिवन मे करना चाहते हैं तरक्की तो
लंबे समय तक आत्म-छल में जीना अवसाद, एंग्जामटी और पहचान का संकट (आइडेंटिटी क्राइसिस) जैसी मानसिक समस्याओं को जन्म दे सकता है। कई लोग मान लेते हैं कि उन्हें वित्त की बहुत समझ है,
जबकि सच्चाई कुछ और होती है। अगर हम खुद को ज्यादा समझादार मान लें. तो हम तलत फैसले ले सकते हैं, जैसे- गलत निवेश करना, जरूरी बचत न करना था जरूरत से ज्यादा सर्च करना। – छोटे-छोटे झूठ हमें थोड़ी देर के लिए अच्छा महसूस कराते हैं, लेकिन लंबे समय में ये हमारा विकास रोक देते हैं।
अगर हम सोबते हैं कि हम सब कुछ सही कर रहे हैं, तो हम अपनी कमजोरियों पर काम नहीं करते और वही गलतियां बार-बार दोहराते हैं। मिसाल के तौर पर कोई व्यक्ति यह मान लेता है कि उसे नौकरी से निकाला गया क्योंकि चॉस पक्षपारी था, जबकि असलियत यह हो सकती है कि उस व्यक्ति का काम स्तर से नीचे था या वह जिम्मेदारियों में लापरवाही बरत रहा था।
सच्चाई में जीने का प्रयास करें
आत्म-मंथन करें…
हर दिन 10-15 मिनट शांति से बैठें और खुद से पूछे- क्या आज मैंने कोई ऐसी बात कही या सोची जो पूरी तरह सच नहीं थी? क्या कोई सच्चाई है जिससे मैं आंखें मूंदे बैठी/बैठा हूं?
क्या में किसी स्थिति में खुद को सही साबित करने के लिए बहाने बना रही रहा हूं?
यह आत्मचिंतन धीरे-धीरे आपको अपने भीतर की परतों तक ले जाता है और सच्चाई के समीप लाता है।
प्रतिक्रिया को सुनें…
हम अक्सर आलोचना को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन विकास तभी होता है जब हम उसे खुले दिल से स्वीकारते हैं। ध्यान रखें, प्रतिक्रिया कोई हमला नहीं है, बल्कि यह आत्म-ज्ञान का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
जर्नलिंग करें…
अपने रोज के विचार, भावनाएं और निर्णय को एक डायरी में दर्ज करें। विशेषकर वे क्षण लिखें जहां आपने सच्चाई को अनदेखा किया या बहाने बनाए। समय के साथ, आपको अपने व्यवहार में दोहराए जा रहे पैटर्न्स साफ़ दिखने लगेंगे।
ईमानदारी को प्राथमिकता बनाएं…
अपने आप से यह वादा करें कि खुद के प्रति हमेशा ईमानदार रहेंगे, भले ही सच्चाई असहज क्यों न करती हो। ईमानदारी का मतलब खुद को दोष देना नहीं है, बल्कि सच्चाई को स्वीकार कर उससे कुछ सीखना है।
छोटी असहजताओं से न भागेंगे…
हम अक्सर तात्कालिक राहत के लिए असहज सच्याइयों से बचते हैं। उदाहरण के लिए, अगर मैं मान तूं कि मैंने गलती की है, तो मुझे शर्मिंदगी महसूस होगी। लेकिन इस शर्मिंदगी या असहजता को महसूस करना ही आत्म-विकास की दिशा में पहला ठोस क़दम है।
सही संगत का चुनाव करें…
ऐसे मित्र, गुरु या सहयोगी चुनें जो आपको सच्चाई से अवगत कराएं। ऐसे लोग आपको बहानों की परतें खोल सकते हैं और आपको सच्चा आईना दिखाकर मार्गदर्शन कर सकते हैं।
रिश्ते में बातें बांटें, बोझ नहीं
रिश्ते-नाते लोगों को मन की बात बताना ठीक है, पर समझें कि आप बातें बता रहे हैं या बस भावनाएं उड़ेलते जा रहे हैं?
हम अक्सर ही किसी अपने से दिल खोलकर बात करना चाहते हैं ताकि मन की परेशानी, दिल का भारीपन और अपने जज्बात बांटकर दिल को सुकून मिल सके। लेकिन, अगर आप हर बार बस अपनी ही बातें कहेंगे बिना सामने वाले की सुने तो ये बात उन्हें बोझिल लग सकती है। आपका ये रवैया इमोशनल डंपिंग भी हो सकता है जो रिश्तों को खराब करने का काम करता है…
जिवन मे करना चाहते हैं तरक्की तो
जब कोई इंसान बार-बार अपनी सारी समस्याएं दुख, गुस्सा या शिकायतें, दूसरे की मनःस्थिति समझे बिना या उसकी सुन बगैर बताता रहता है तो इसे इमोशनल डंपिंग कहा जाता है। शुरुआत में लगता है कि सिर्फ बातें और भावनाएं साझा की जा रही हैं, पर जब ये रोज-रोज होता है तो दूसरा व्यक्ति इससे थक सकता है। उसे ऐसा महसूस हो सकता है जैसे वो बस सुनने के लिए ही है। उसका खुद का कोई हालचाल या भावनाएं आपके लिए मायने नहीं रखतीं। इस कारण वो धीरे-धीरे आपसे दूरी बनाने लगता है। इसलिए अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो संभल जाएं।
पहले पहचान करें…
- परेशानी क्या आपकी पर ही हर टिकी बातचीत होती है? सिर्फ आपकी
- क्या आप बिना पूछे अपनी बातें सामने वाले पर उड़ेल देते हैं?
- क्या आप सिर्फ शिकायत करते हैं और हल ढूंढने की कोशिश नहीं करते?
- क्या आप सामने वाले की बातों को मनःस्थिति पर ध्यान नहीं देते ?
अगर इन सवालों में आपका जवाब ‘हां’ है, तो आपको अपने व्यवहार पर ध्यान देने की जरूरत है।
इस तरह संभलें…
- बात शुरू करने से पहले पूछें, ‘क्या आप मेरी बात सुनने के तैयार हैं? अगर कोई समस्या है तो हम इस बारे में बाद में भी बात कर सकते हैं।’
- अपनी बात सीमाओं के अंदर ही रखें और सामने वाले की बात भी ध्यान से सुनें। बीच-बीच में उसका हाल भी जानने की कोशिश करें।
- जर्नलिंग करें या फिर रोज डायरी लिखकर भी अपनी भावनाएं
- किसी पेशेवर विशेषज्ञ से बात करें ताकि आप अपनी भावनाओं को सही जगह और सही ढंग से संभाल
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