नगर | सुजाता | बिहार बोर्ड मैट्रिक हिन्दी नोट्स

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लेखक परिचय-इस कहानी की लेखिका का जन्म तमिलनाडु के चेन्नई में हुआ था। सुजाता का वास्तविक नाम एस० रंगराजन है। इन्होंने अपनी रचना-शैली के द्वारा तमिल कहानी विधा में एक अभूतपूर्व परिवर्तन कर तमिल कथा साहित्य को समृद्ध किया है। यही कारण है कि इनकी रचनाएँ अत्यधिक लोकप्रिय हो गई है। प्रस्तुत कहानी ‘नगर’ आधुनिक तमिल कहानियाँ ‘नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ से साभार संकलित है। इस कहानी के अनुवादक के० ए० जमुना हैं।

पाठ-परिचय-पस्तुत कहानी ‘नगर’ व्यंग्य प्रधान कहानी है। इसमें कहानीकार ने नगरीय अव्यवस्था पर कटाक्ष किया है कि किस प्रकार ग्रामीण भोली-भाली जनता के साथ नगर में उपेक्षा एवं बदसलूकी होती है। यह कहानी एक ऐसी लड़की से संबंधित है, जो आज ही मदुरै आई है। उसकी माँ वल्लिअम्माल अपनी पुत्री पाप्पाति के साथ मदुरै स्थित बड़े अस्पताल के बहिरंग रोगी विभाग के बाहर बरामदे पर बैठी प्रतीक्षा कर रही थी। उसकी पुत्री को बुखार था।

गाँव के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र के डॉक्टर ने नगर के बड़े अस्पताल में ले जाने की सलाह दी। बड़े अस्पताल के डॉक्टरों ने उसकी जाँच कर उसे एडमिट (भर्ती) करवा देने को कहा। वल्लिअम्माल अनपढ़ थी। वह इतना भी नहीं जानती थी कि पेसेंट किसे कहते हैं? फिर भी उसे विभिन्न दफ्तरों में चिट लेकर जाने को कहा जाता है। डॉक्टर के आदेश की अवहेलना कर उसकी पुत्री को एडमिट नहीं किया जाता है। तंग आकर वह वहाँ से विदा हो जाती है। दूसरे दिन जब बड़े डॉक्टर पाप्पाति को अनुपस्थित देखकर जानकारी लेते हैं तो पता चलता है कि वह वहाँ से विदा हो चुकी है। इससे स्पष्ट होता है कि नगर की व्यवस्था अति अस्त-व्यस्त हो गई है, जहाँ पैसे पर खेल होता है। गरीब एवं ग्रामीणों के लिए कोई जगह नहीं है।

सारांश मदुरै के एक बड़े अस्पताल में वल्लि अम्माल अपनी लड़की पाप्पाति के साथ बहिरंग विभाग के बरामदे में बैठी प्रतीक्षा कर रही थी । पाप्पाती को बुखार था। उसे लेकर गाँव के प्राइमरी हेल्थ सेंटर गई तो डॉक्टर ने कहा-‘सुबह की पहली बस से बड़े अस्पताल पहुँचो ।’
स्ट्रेचर पर बेहोशी-सी पड़ी पाप्पाती को घेरे छह डॉक्टर खड़े थे। बड़े डॉक्टर ने उसका सिर घुमाकर देखा, पलकें उठाकर देखा, गालों को ऊँगली से दबाया। फिर बोले-‘एक्यूट केस ऑफ मेनिनजाइटिस ।’ फिर बारी-बारी से दूसरे डॉक्टरों ने देखा। बड़े डॉक्टर ने एडमिट करने को कहा। वल्लि अम्माल ने बड़े डॉक्टर की ओर देखकर पूछा- ‘बाबूजी । बच्ची अच्छी हो जाएगी न ?’

डॉक्टर ने कहा-‘पहले एडमिट करवा लें। इस केस को मैं स्वयं देखूँगा ।’ डॉ॰ धनशेखरन श्रीनिवासन को सारी बात समझाकर बड़े डॉक्टरके पीछे दौड़े। श्रीनिवासन ने वल्लि अम्माल से कहा- ‘ये ले। इस चिट को लेकर सीधे चली जाओ। सीढ़ियों के ऊपर कुर्सी पर बैठे सज्जन को देना। बच्ची को लेटी रहने दो।’

वल्लि अम्माल चिट लेकर सीधे चली गई। कुर्सी खाली पड़ी थी । थोड़ी देर बाद सज्जन अपने भांजे को भर्ती कराकर लौटे। सबको लाइन लगाने को कहा। आधे घंटे बाद वल्लि अम्माल से कहा- ‘इस पर डॉक्टर के दस्तख्त नहीं है। दस्तखत करवा लो।’ फिर वेतन आदि के बारे में पूछकर चिट देकर कहा- ‘इसे लेकर सीधे जाकर बाएँ मुड़ना। तीर का निशान बना होगा। 48 नम्बर कमरे में जाना।’ वल्लि अम्माल को कुछ समझ में नहीं आया । इधर-उधर घूमकर एक कमरे के पास पहुँची। वहाँ के आदमी ने चिट ले ली। कुछ देर बाद पाप्पाति का नाम पढ़कर कहा-

इसे यहाँ क्यों लाई ? ले, इसे लेकर सीधे चली जा।’ और अपने काम में लग गया। फिर एक आदमी को लगा दिया। वल्लि अम्माल उसके पीछे दौड़ती चली। वहाँ बड़ी भीड़ थी। एक आदमी ने चिट रखकर आधे घंटे बाद नाम पुकार कर कहा- ‘इस समय जगह नहीं है। कल सबेरे साढ़े सात बजे आना ।

वल्लि अम्माल भागी चक्कर काटकर सीढ़ी के पास पहुँची। बगल का दरवाजा बंद था। इसी में उसकी बेटी स्ट्रेचर पर पड़ी दिखाई दी। पास वाले आदमी से गिड़‌गिड़ा कर बोली- ‘दरवाजा खोलिए। मेरी बेटी अन्दर है।’ उसने कहा- ‘सब बंद हो चुका है। तीन बजे आना।’ इसी बीच एक आदमी ने कुछ पैसे देकर दरवाजा खुलवाया। वल्लि अम्माल भीतर दौड़ी गई और पाप्पाति को कलेजे से लगाए बाहर आई। फिर बेंच पर बैठकर खूब रोई। इसे समझ में नहीं आ रहा था कि अगले दिन सुबह तक क्या करें ? फिर सोचा इसे मामूली बुखार ही तो है। वापस चलती हूँ। वैद्यजी को दिखा दूँगी। माथे पर खड़िया मिट्टी का लेप कर दूँगी और अगर पाप्पाती ठीक हो गई तो वैदीश्वरनजी के मंदिर जाकर भगवान को भेंट चढ़ाऊँगी। वल्लि अम्माल का साइकिल रिक्शा बस अड्डे की ओर बढ़ चला

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