अकेलापन है सबसे खतरनाक -
एक ओर दुनिया उनके अकेलेपन को लेकर हैरान-परेशान है। दूसरी ओर वे यानी हमारे युवा सोलो लिविंग के तौर-तरीके अपनाने में आगे से आगे हैं। विश्व स्तर पर अकेले रहने वाले युवा वयस्क भी बढ़े हैं। वहीं सोलो ट्रैवेल, स्लीप डिवोर्स, फ्रेंडशिप मैरिज जैसे चलन के प्रति युवाओ में आकर्षण बढ़ा है, जो विशेषज्ञों की मानें तो मानसिक अकेलेपन को बढ़ाने वाले ट्रेंड हैं। ट्रेंड के चक्र में फंसकर अकेले हो रहे युवाओं की मदद के लिए आप क्या कर सकते हैं, बता रहे हैं तोयज कुमार सिंह
क्या युवाओं को रास आ रहा अकेलापन ?
सोलो ट्रैवल के के बाद अब सोलो लिविंग युवाओं की पसंद बन रही है। एक ऐसी जीवनशैली, जिसमें युवा अकेला रहना पसंद करते हैं। खुद की दुनिया, खुद के नियम… शायद युवाओं की इसी सोच से स्लीप डिवोर्स, फ्रेंडशिप मैरिज जैसे चलन को हवा मिल रही है। दरअसल इस तरह की शादी के पीछे की वजह है कुछ जिम्मेदारियों से आजादी। एक हालिया रिपोर्ट की मानें तो जापान की लगभग एक फीसदी आबादी ‘फ्रेंडशिप मैरिज’ में खास रुचि दिखा रही है। इस शादी में न अंतरंग संबंधों के लिए कोई जगह, न प्यार के लिए।
बस, नाम का रिश्ता। इसी तरह स्लीप डिवोर्स में, जोड़े एक-दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध होते हुए भी अलग- अलग बिस्तरों पर अलग-अलग सोने का फैसला करते हैं। हो सकता है पहली नजर में आपको इसमें कोई खराबी न दिखे, लेकिन विशेषज्ञ युवाओं की इस प्रवृत्ति को अकेलेपन को बढ़ावा देने वाला मान रहे हैं। क्या वाकई आज के युवाओं को अकेले रहना रास आने लगा है? क्या वे सच में परिवार के साथ नहीं रहना चाहते। उनकी ये जिद कहीं मानसिक समस्याओं को बढ़ा तो नहीं रही है? यह चिंता इसलिए भी बढ़नी चाहिए, क्योंकि एक रिपोर्ट बताती है कि 2001 के बाद से वैश्विक स्तर पर अकेले रहने वाले युवा वयस्कों की संख्या 50% से अधिक बढ़ गई है।
सोलो’ है मोटो
न्यूयॉर्क शहर के एक ऊंचे अपार्टमेंट में यूट्यूबर मिशेल चोई रोजाना किचन में अपना नाश्ता बनाती हैं और वह इसे अपने बड़े से लिविंग रूम में फर्श पर बैठकर खाती हैं और पूरे समय कैमरे से बातें करती रहती हैं। घर के काम करते हुए वे एक-एक वीडियो को साझा करती हैं और उनके वीडियो को लाखों व्यूज भी मिलते हैं। मिशेल के लिए उनकी डिजिटल दुनिया ही परिवार और दोस्त है। उन्हें अकेले रहना ही पसंद है। दरअसल, आज के युवाओं में सोलो लिविंग का चलन बढ़ रहा है। अमेरिका में हुए एक सर्वे में खुलासा भी हुआ है कि देश में 28 फीसदी से अधिक मकान मालिक अकेले रह रहे हैं, जिसमें 23 से 36 आयु के युवाओं की संख्या ज्यादा है। हालांकि एक युवा के चश्मे से देखें तो ये काफी अच्छा लगता है। पर, असल जिंदगी में क्या वो खुश हैं ?
पास होकर भी बढ़ रही दूरी
दिल्ली की 24 वर्षीय अनामिका बीते दो साल से एक आईटी कंपनी में काम कर रही हैं, लेकिन उनका ऑफिस है उनके घर का एक कमरा। अब उनको अपने कमरे में बंद रहना पसंद है। ऑफिस के काम और मी टाइम के नाम पर वो धीरे-धीरे परिवार से दूर होती जा रही है, यह उसे पता ही नहीं चला। डिप्रेशन में थी, लेकिन इस बारे में उसने घरवालों से कुछ भी नहीं कहा। जब उसके मन में आत्महत्या करने के विचार आने लगे, तब उसके एक दोस्त ने घरवालों को इस बारे में आगाह किया। फिलहाल अनामिका अपने माता- पिता की निगरानी में है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि एक छत के नीचे रहते हुए भी युवा अपने मन की बातें क्यों नहीं साझा कर पा रहे हैं?
क्या युवाओं को रास आ रहा अकेलापन ?
आंकड़े इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि दोस्ती, रिलेशनशिप, प्यार, लगाव, हुकअप, ब्रेड क्रमिंग, घोस्टिंग, जाम्बिंग, बेंचिंग, स्टैशिंग और कैटफिशिंग की खिचड़ी खाने वाले युवाओं में से कई अकेलेपन की गिरफ्त में हैं। एक अंतरराष्ट्रीय शोध के मुताबिक, दुनिया का हर चौथा युवा अकेलेपन से जूझ रहा है। इस बाबत अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर यतन पाल सिंह बलहारा कहते हैं, ‘जीवन एक- दूसरे से जुड़े रहने का चक्र है। अब गैजेट्स और सोशल मीडिया ने लोगों के क्या युवाओं को रास आ रहा अकेलापन ? खासकर युवा इस दुनिया की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि वे वैसा संपर्क नहीं बना पाते या खुलकर बात नहीं कर पाते, जैसा वे चाहते हैं या जैसा उनके मन में चल रहा है। नतीजतन परिवार, भाई बहनों और दोस्तों से बातचीत का दायरा
सीमित हो रहा है। इसी का नतीजा है कि जब आप स्क्रीन की दुनिया से कुछ वक्त के लिए बाहर निकलते हैं या उससे ऊब जाते हैं, तो खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं।’
अकेलेपन पर, दुनियाभर में हो रहे प्रयोग
हजारों की संख्या में डेटिंग साइट्स, किराये पर मिलने वाले दोस्त, हगिंग ऐप्स, अकेलेपन से लड़ने में मदद करने वाले कोर्स, रोबोट, पेट्स और एआई अवतार…। आजकल अकेलेपन को दूर करने के तरह-तरह के नुस्खे ईजाद हो चुके हैं या यों कहें कि ये आपका दर्द बांटने के लिए तैयार बैठे हैं। बस, खुल कर बात तो कीजिए। इसके अलावा अकेलेपन की आपदा को अवसर में बदलने के लिए कुछ काबिलेगौर प्रयोग दुनियाभर में हो रहे हैं, जैसे कैलिफोर्निया का एंटी-लोनलीनेस क्लब, जापान का हैंडसम वीपिंग ब्यॉएज और मेनचेस्टर का हाउस ऑफ बुक्स एंड फ्रेंड्स, ऐसे ही प्रयास हैं। जापान की एक कंपनी तो, रोने के लिए स्मार्ट और प्रशिक्षित युवाओं की सेवा भी दे रही है।
मतलब इनके आगे आप रो सकते हैं, अपने दुख जाहिर कर सकते हैं। ये प्रशिक्षित लोग किसी पुरुष या महिला के इमोशंस को बाहर लाने में मदद करते हैं। ये एक तरह का कंधा हैं, जिन पर सिर रख कर लोग रो सकते हैं। हालांकि ये सब कुछ मुफ्त में नहीं है। बाकायदा आपको इसके लिए अपनी जेब ढीली करनी होगी। भारत में भी ऐसे प्रयास शुरू हो चुके हैं, जैसे ‘गुडफेलोज’ वरिष्ठ नागरिकों में अकेलापन कम करने के लिए एक स्टार्टअप है। वहीं कहीं-कहीं अकेलेपन के लिए मंत्रालय भी बनाए जा रहे हैं।
अकेलेपन में एआई साथी
स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी का आगमन और सोशल मीडिया का उदय, एक ओर तो अकेलापन बढ़ाने की वजह बने हैं, वहीं अब उसी दुनिया से इसके समाधान के नए-नए नुस्खे भी आ रहे हैं, जैसे एआई आधारित गर्लफ्रेंड, जिसका नाम है ‘डिजी एआई रोमांस’। यह अपने यूजर को एक साथी के रूप में एक डिजिटल अवतार बनाने की अनुमति देता है। इसमें यूजर अपनी इच्छानुसार शैली में अपनी पसंद का अवतार बना सकते हैं और ऐप के माध्यम से उसके साथ बातचीत कर सकते हैं, उसके साथ डेटिंग कर सकते हैं।
अकेलेपन को ऐसे समझ सकते हैं
घर से दूर या घर में रहने वाले बच्चे की बात जब आपको अजीब लगने लगे तो सतर्क हो जाना चाहिए। अभिभावकों और परिवार के दूसरे सदस्यों को युवा बेटा- बेटी के बात करने के तौर तरीकों में आए छोटे-छोटे बदलावों पर ध्यान देना चाहिए। बच्चे का दैनिक काम में मन नहीं लग रहा, उसकी भूख और नींद प्रभावित हो रही है, उसका व्यक्तित्व पहले से अलग हो रहा है, अचानक वे किसी दिन कहने लगे कि इस नौकरी का क्या फायदा तो ये सतर्क होने का वक्त है।
सुधार के पांच मंत्र
- मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का प्रयोग सीमित करें
- घर-परिवार और दोस्तों से ज्यादा से ज्यादा बात करें
- खुद पर तनाव और अवसाद को हावी न होने दें
- आउटडोर एक्टिविटीज के लिए भी समय निकालें
- पर्याप्त नींद लें और मन को भी आराम देना सीखें
15 सिगरेट जैसा हानिकारक है अकेलापन
इंस्टा, मेटा, यू-ट्यूब, ओटीटी सब कुछ होने के बावजूद युवा अकेलापन महसूस कर रहे हैं। जहां वे अपनी हर समस्या का हल ढूंढ़ने जाते हैं, तो फिर उस आभासी दुनिया ने उनको अकेला कैसे कर दिया? एम्स नई दिल्ली के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर यतन पाल सिंह बलहारा कहते हैं,’ इस डिजिटल और एआई के दौर में घर-परिवार और समाज की दुनिया का दायरा सीमित हो गया है। सोशल मीडिया युवाओं के लिए एक ऐसी लुभावनी दुनिया बन गई है, जहां चमक-दमक तो खूब है,
लेकिन असल जिंदगी सा अपनापन नहीं है। सोशल मीडिया पर लगातार आने वाली पोस्ट को देख कर वे अपनी तुलना उससे कर लेते हैं। धीरे-धीरे यही नकारात्मकता उदासीपन की वजह बन, उन्हें अकेला कर देती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीते वर्ष अकेलेपन को स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा घोषित किया था। संगठन के मुताबिक, अकेलेपन से स्वास्थ्य को उतना ही नुकसान होता है, जितना एक दिन में 15 सिगरेट पीने पर होता है।
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