जीवन में सफलता का रहस्य समझे | जीससे आप बन सकते हैं करोड़पति:- कितने भी उतार-चढ़ाव आएं, जिंदगी से मोहब्बत कम नहीं होनी चाहिए। मेरी जिंदगी में भी मुश्किलें आई, पर प्यार बना रहा।
खुशी की गाइड
शुक्रिया कहना सेहत के लिए अच्छा है…
अपने जीवन के प्रति शुक्रिया के अहसास से भरे होने का दूसरा नाम है- कृतज्ञता या ब्रैटिट्यूड। यह एक ऐसी सकारात्मक और रचनात्मक शक्ति है, जो हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करती है। हेल्थ हार्वर्ड के शोध में स्वास्थ्य पर कृतज्ञता के सकारात्मक प्रभावों की खोज की गई, जिसमें बेहतर भावनात्मक और सामाजिक वेल-बीइंग, नींद की गुणवत्ता, अवसाद का कम जोखिम और हृदय- स्वास्थ्य के अनुकूल मार्कर शामिल हैं। नए डेटा से पता चलता है कि इससे जीवन की अवधि भी बढ़ सकती है।
- जुलाई 2024 में प्रकाशित इस स्टडी के लिए 49,275 महिलाओं से बातचीत की गई थी। उनकी औसत आयु 79 वर्ष थी। उनकी रैंकिंग इस प्रकार के कथनों पर सहमति के आधार पर बनाई गई थी कि ‘मेरे पास जीवन में बहुत कुछ है, जिसके लिए में आभारी हूं,’ और ‘अगर मुझे उन सभी चीजों की फेहरिस्त बनानी पड़े, जिनके लिए मैं कृतज्ञ हूं, तो यह बहुत लंबी सूची होगी’ आदि। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन महिलाओं की कृतज्ञता का स्कोर ऊंचा था, वे हृदय रोग समेत मृत्यु के अनेक कारणों से अपनी रक्षा करने में सफल रही थीं।
- शोधकर्ताओं का कहना है कि कृतज्ञता के बारे में उल्लेखनीय बात यह है कि लगभग कोई भी इसे कर सकता है। कोई भी व्यक्ति अपने आस-पास की सकारात्मक चीजों को पहचान सकता है और दूसरों को उसके जीवन में जो अच्छा है, उसके लिए धन्यवाद दे सकता है। कृतज्ञता लोगों को खुश महसूस कराती है और इस खुशी का कोई खर्च में भी नहीं है।
सकारात्मक-संकल्प निवेश की डायरी बनाएं
आजकल निवेश हो या खर्च, सारा काम एप के जरिए ही होता है। लेकिन स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी का एक शोध कहता है कि निवेश व खर्च का हिसाब-किताब डायरी में हाथ से लिखा जाए, तो उसका फायदा मिलता है। जब कोई चीज लिखना शुरू कर देते हैं, तो निर्णयों में गंभीरता ज्यादा आती है। आप निवेश लक्ष्यों को लेकर एकदम स्पष्ट रह पाते हैं और जोखिम भरे निर्णय लेने से पहले सटीक आकलन कर पाते हैं। इसके लिए अपने सारे निवेश, बीमा पॉलिसी, आपात स्थिति के लिए लिया रिस्क कवरेज की जानकारी लिखकर रखें। साथ ही संबंधित व्यक्ति का फोन नंबर, वेबसाइट, पॉलिसी के ऑनलाइन दस्तावेज की जानकारी भी लिखकर रखें। टेक्नोलॉजी के रूप में रिकॉर्ड रहता है, लेकिन हाथ से लिखकर रखने के अपने फायदे हैं।
जो नियंत्रण में नहीं, उसकी चिंता छोड़ें
अगर दुनिया में ऐसी सो बोबे हैं जिन मदद से आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं तो हजारों ऐसे फैक्टर्स भी हैं, जिन पर आपका कोई नियंत्रण नहीं और जो आपके लक्ष्यों पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं। आपने बहुत अच्छा व्यवसाय शुरू किया, लेकिन सरकार की पॉलिसी बदल गई तो? आपने सोचा कुछ और हो कुछ गया तो? बात वही है कि कर्म पर हमारा अधिकार है, फल पर नहीं है। अनगिनत चीजें ऐसी हैं, जो आपके बस में नहीं हैं, लेकिन आपने अपने लिए जो सपने संजोकर रखे हैं, वो उन पर गहरा असर डाल सकती हैं। यही कारण है कि श्रीमद्भगवदीता में भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया था कि आप अपनी ओर से अपना सर्वश्रेष्ठ कर्म करते रहो, लेकिन उसका फल क्या होगा, यह मुझ पर छोड़ दो।
आपके पूर्व के जो कर्म हैं,..
आपने जिस भावना से वह कर्म किया है, आपका जो स्वार्थ उसमें था, आप जिस चीज में धक्का मारकर आगे निकल गए हो, वो सब भी गिनती में तो लेना पड़ेगा ना? उसी हिसाब से अंतिम परिणाम भी सामने आता है। अगर इस बात को समझ लोगे तो कभी डिप्रेशन में नहीं आओगे, कभी एंग्जायटी नहीं होगी, कभी नींद की गोली नहीं खानी पड़ेगी|
हम अपने मन के परिणाम पर हद से ज्यादा निर्भर हो जाते हैं, इसलिए हम अपने जीवन में तमाम तरह को नकारात्मकताओं का अनुभव करते हैं।
प्रमुख स्वामी महाराज वल्लभ विद्यानगर में थे, तब एक इंजीनियरिंग कम्पनी के जनरल मैनेजर उनको मिलने के लिए आए। बोले, स्वामी जी, मैंने आपको हर क्रिया में सुबह से शाम तक देखा है, कभी आपके चेहरे पर उदासी नहीं देखी, स्ट्रेस नहीं देखा। कभी आपके चेहरे पर चिंता की लकीर तक नहीं दिखाई दी। ये कैसे हो सकता है? हम तो एक कम्पनी चलाते हैं, 90 करोड़ का टर्नओवर है, तब भी अगर शाम को शराब न पीएं तो नींद नहीं आती है।
आप हमेशा तरोताजा दिखाई देते हैं। इसकी बुक्ति क्या है? प्रमुख स्वामी महाराज ने कहा कि हम भी सुबह उठकर काम शुरू करते हैं, लेकिन शाम होते-होते प्रभु को अर्पण कर देते हैं कि आपने मुझे जितनी शक्ति, बल, बुद्धि दी, उस हिसाब से मैंने अपना कर्म अपनी पूरी क्षमता से करने का प्रयत्न किया है। ये रहा की कार्य। अब आपकी जो इच्छा हो, मुझे फल देना, कल सुबह देखेंगे। स्वामी जी ने कहा, ये सोचकर हम सो जाते हैं। नींद आ जाती है। स्लीपिंग पिल्स की जरूरत नहीं पड़ती। डिप्रेशन और फ्रस्ट्रेशन नहीं होते।
और हम लोग क्या मानते हैं? मैंने इतना पुरुषार्थ किया है ना…
अब इतना परिणाम तो आना ही चाहिए। हम अपने मन के परिणाम पर हद से ज्यादा निर्भर हो जाते हैं, इसलिए हम अपने जीवन में तमाम तरह की नकारात्मकताओं का अनुभव करते हैं। हां, लक्ष्य को सामने रखना चाहिए कि आज से इतने इतने दिन बाद मुझे ऐसा ऐसा करना है। उसके हिसाब से योजना भी बनानी चाहिए और कड़ी मेहनत करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। लेकिन जो सोचा था, वो नहीं मिला, कम मिला, तो उस समय ये समझ, ये स्वैया काम आता है। जो मिले, उसे स्वीकार करना होता है, और बहुत ही कृतज्ञता के भाव के साथ स्वीकार करना होता है, तब कोई भी मुश्किलें पैदा नहीं होंगी।
संघर्ष की कहानी
वजन के कारण आलोचनाएं झेली, अब टेस्ट क्रिकेट के स्टार हैं
मुंबई में जन्मे सरफराज खान का क्रिकेट करिअर उतार-चढ़ावों से भरा रहा। ज्यादा वजन के कारण मैच से बाहर निकाले गए, क्रिकेट अकेडमी भी छोड़नी पड़ी। पिता के साथ रेलवे स्टेशन पर भी सोए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। रविवार को न्यूजीलैंड के साथ हुए टेस्ट मैच में भारत भले हार गया हो, लेकिन मैच की दूसरी इनिंग में सरफराज के 150 रनों की पारी ने उन्हें हीरो बना दिया। आइए उनके संघर्ष और सफलता की कहानी जानते हैं…
26 साल के सरफराज खान का….
जीवन संघर्ष की जीती-जागती मिसाल है। बचपन से क्रिकेटर बनने का सपना संजो रहे सरफराज ने महल 12 साल की उम्र में अपनी असाधारण प्रतिभा से खेल जगत को चौंका दिया। लेकिन अपनी फिटनेस और विवादों के कारण उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। अपने वजन के कारण चॉडी शेमिंग भी झेली। पर पूर्व क्रिकेटर और कोच रहे उनके पिता नौशाद एक मजबूत दीवार की तरह उनके साथ डटे रहे। अभावों और मजबूरियों के बीच सरफराज कई रातें रेलवे स्टेशन पर भी सोए।
संघर्षः मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने कैंप से बाहर कर दिया था…
महज 12 साल की उम्र में हैरिस शील्ड ट्रॉफी में 439 रनों का रिकॉर्ड बनाकर सरफराज चर्चा में आ गए। उनके प्रदर्शन के बाद मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए) में एंट्री मिली, लेकिन उम्र के विवाद के कारण उन्हें कैंप से बाहर कर दिया गया। इस दौरान उन्होंने क्रिकेट छोड़ने तक का सोच लिया था। यह संघर्ष आगे भी जारी रहा, जब मुंबई रणजी टीम ने फिटनेस में कमी के कारण उन्हें बाहर कर दिया था। 2015 में एमसीए ने अनुशासनहीनता के कारण उनकी मैच फीस भी रोक दी थी। नतीजतन सरफराज ने उत्तर प्रदेश टीम से खेलना शुरू कर दिया था। हालांकि चार साल बाद वह मुंबई टीम में लौट आए थे।
प्रतिभा : रणजी में सर्वाधिक रन बनाए, इरानी ट्रॉफी भी जिताई
अंडर-19 टीम में चयन के बाद उन्होंने शतक लगाए। 2019-20 रणजी ट्रॉफी में 150 से ज्यादा की औसत से 900 रन बनाकर एकबार फिर उन्होंने खेलप्रेमियों को चौंकाया। 2021-22 में 982 रन बनाकर वे टॉप स्कोरर बने। उनके योगदान की बदौलत शेष भारत 2022 में इरानी ट्रॉफी और म मुंबई सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी जीतने में कामयाब रहा।
सफलताः जब गावस्कर ने भी इनके चयन की वकालत की
पूर्व भारतीय क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने सरफराज को टेस्ट टीम में शामिल नहीं करने पर चयनकर्ताओं पर सवाल उठाए थे। आखिरकार 15 फरवरी 2024 को इंग्लैंड के खिलाफ उन्हें अपना पहला इंटरनेशनल टेस्ट डेब्यू करने का मौका मिला। इसमें उन्होंने 62 और 68 (नाबाद) रन बनाए। अब न्यूजीलैंड के साथ टेस्ट में उन्होंने 195 गेंदों में 150 रन की पारी खेली।
प्रेरक प्रसंग
जब मनोविज्ञान से बच्चे का पता चला
ऑस्ट्रिया के न्यूरोलॉजिाट सिमंड फ्रायड (1856- 1939) को साइकोएनालिसिस के विकास का श्रेय दिया जाता है। पढ़िए उनके जीवन का वे चर्चित प्रसंग।
साल 1890 के आसपास की बात है। छुट्टी का दिन था। सिग्मंड फ्रायड अपनी पत्नी मार्च बनेंस और अपने बच्चे के साथ नजदीक के एक पार्क में घूमने गए। तीनों पार्क में अच्छा समय बिता रहे थे। जब लौटने की बारी आई तो देखा कि बच्चा गायब था। दोनों आपस में इतने खो गए थे कि बच्चे का ख्याल ही नहीं रहा। बच्चे को न पाकर मार्धा घबरा गई, मगर फ्रायड को जैसे कुछ हुआ ही नहीं था।
उनकी पत्नी थोड़ी गुस्से में आकर बोलीं,
‘आप खामोश क्यों हैं, देखिए न बच्या कहां गया?’ फ्रायड ने धीरज बंधाते हुआ कहा, ‘इतना मत घबराओ, बच्चा मिल जाएगा।’ क्या बिना खोजे ही?’ पत्नी को आवाज अब खीझ थी। में ‘हां, बिना खोजे हीं’, उसी धैर्य के साथ फ्रायड ने कहा और पूछा, ‘क्या तुमने उसे कहीं जाने से मना किया था?
पत्नी थोड़ी देर सोचती रहीं।
उसे याद आया कि उसने बच्चे को फव्वारे के पास जाने से मना किया था। यह सुनकर फ्रायड बोले 95 फीसदी तो यही उम्मीद है कि बच्चा फव्वारे के पास होगा। और बाकई बच्चा फव्वारे के पास बैठा पानी की धार को मंत्रमुग्ध भाव से देख रहा था।
सीधा-सा नियम है…
फ्रायड की पत्नी को जिज्ञासा हुई कि आखिर उन्हें यह कैसे पता लगा कि बच्चा फव्वारे के पास ही होगा। मनोविश्लेषक फ्रायड ने बताया कि बच्चे वहीं जाते हैं, जहां उन्हें जाने से मना किया जाता है। वह उस काम को जानबूझकर करेंगे, जिसे करने से उन्हें मना किया जाता है। फ्रायड ने इस रहस्योद्घाटन के बाद जोड़ा कि मनोविज्ञान का यह सीधा-सा नियम बच्चों पर ही नहीं हम बड़ों पर भी समान रूप से लागू होता है।
कुछ महत्वपूर्ण लिंक
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