शिक्षा और संस्कृति – महात्मा गॉंधी Class 10th Hindi PDF Notes:-
लेखक-परिचय
जीवन-परिचय : राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई० में पोरबंदर (गुजरात) में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गाँधी और माता का नाम पुतलीबाई था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और उसके आस-पास हुई। 4 दिसंबर, 1888 ई० में वे वकालत की पढ़ाई के लिए युनिवर्सिटी कॉलेज लंदन यूनिवर्सिटी लंदन गए। 1883 ई० में कम उम्र में ही उनका विवाह कस्तूरबा से हुआ जो स्वाधीनता संग्राम में उनके साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलीं। गाँधीजी के जीवन में दक्षिण अफ्रीका। वर्ष 1893-1914 के प्रवास का ऐतिहासिक महत्त्व है। वहीं उन्होंने अँग्रेजों के खिलाफ अहिंसा का पहला प्रयोग किया।
1915 ई० में गाँधीजी भारत लौट आए और स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। आजादी की लड़ाई में उन्होंने सत्य, के प्रयोग किए। अहिंसा और सत्याग्रह उनका सबसे बड़ा हथियार था। उन्होंने स्वराज की माँग की, अछूतोद्धार का काम किया। सर्वोदय का कार्यक्रम चलाया, स्वदेशी का नारा दिया, समाज में व्याप्त ऊँच-नीच, जाति के विभेदक भाव को मिटाने की कोशिश की और अंततः अँग्रेजों की गुलामी से भारत की आजादी दिलाई ।
रचनाएँ
रचनाएँ गाँधीजी को रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘महात्मा’ कहा। उन्हें ‘बापू’, ‘राष्ट्रपिता’ आदि कहकर कृतज्ञ राष्ट्र याद करता है। गाँधीजी ‘हिंद स्वराज’ ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ आदि पुस्तकें लिखीं। उन्होंने ‘हरिजन’, ‘यंग इंडिया’ आदि पत्रिका भी संपादित की। उनका पराजीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित था। उन्होंने शिखा, संस्कृति, राजनीति तथा सामाजिक एवं आर्थिक पक्षों पर खूब लिखा और उनके प्रयोग के द्वारा भारतवर्ष को फिर से एक उन्नत एवं गौरवशाली राष्ट्र बनाने की कोशिश की।
निधन
निधन 30 जनवरी, 1948 ई० में नई दिल्ली में नाथू राम गोड्से ने उनकी हत्या कर दी। गाँधीजी की स्मृति में पूरा राष्ट्र 2 अक्टूबर को उनकी जयंती मनाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके जन्म दिवस को ‘अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
पाठ-परिचय
पाठ-परिचय-प्रस्तुत पाठ ‘शिक्षा और संस्कृति’ में ‘हरिजन’ और ‘यंग इंडिया’ जैसे ऐतिहासिक पत्रों के अग्रलेखों से संकलित-संपादित महात्मा गाँधी के विचार प्रस्तुत है। इसमें गाँधीजी के क्रांतिकारी शिक्षा-दर्शन के अनुरूप जीवन में उपयोगी, व्यावहारिक दृष्टिकोण तथा विचार है। इससे मनुष्य को नैतिक विकास की प्रेरणाएँ मिलती हैं और मन, बुद्धि तथा शरीर का संतुलित परिष्कार होता है। गाँधीजी की शिक्षा और संस्कृति संबंधी परिकल्पना न तो सैद्धांतिक है और न ही जटिल और पुस्तकीय, बल्कि हमारे दैनिक जीवन-व्यवहार से जुड़ी हुई है।
पाठ का सारांश
शिक्षा का जीवन से संबंध
शिक्षा का जीवन से संबंध गाँधीजी के विचार हमारे जीवन में आज भी उपयोगी हैं। व्यावहारिक दृष्टिकोण से पूर्ण हैं। इनके द्वारा प्रतिपादित और सुझाए गए विचार आज भी बल प्रदान करते हैं। आत्मिक और बौद्धिक विकास में सहायक हैं। मानसिक एवं शारीरिक संतुलन कायम रखते हुए नैतिक विकास के लिए प्रेरणाप्रद हैं। गाँधी द्वारा शिक्षा और संस्कृति के बारे में जो परिकल्पना प्रस्तुत की गयी है वह, केवल सैद्धांतिक ही नहीं है, जटिल और पुस्तकीय भी नहीं है, बल्कि हमारे साधारण दैनिक जीवन में व्यावहारिक रूप से गहरे अर्थों में जुड़ी हुई हैं।
अहिंसा और प्रेम का महत्त्व
अहिंसा और प्रेम का महत्त्व – अहिंसा और प्रेम के रास्ते ही हम सामाजिक बुराइयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं । इन्हीं दोनों हथियार के बल पर गाँधीजी ने टॉल्सटाय फार्म और फिनिक्स आश्रम में बच्चों को शिक्षा देने की भरसक कोशिश की थी।
बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा
बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा-लेखक के अनुसार शिक्षा से अभिप्राय बच्चे और मनुष्य के शारीरिक, बौद्धिक तथा आत्मिक गुणों को प्रकट करना आवश्यक होता है, क्योंकि पढ़ने-लिखने का कोई आदि-अंत नहीं होता । वह पुरुष और स्त्री को शिक्षा देने के साधनों में सिर्फ एक साधन है । साक्षरता कोई शिक्षा नहीं है। इसलिए लेखक ऐसी शिक्षा प्रारंभ करने का हिमायती है। जिसमें तालीम के साथ-साथ उत्पादन करने की क्षमता प्राप्त हो सके । क्योंकि इस प्रकार की शिक्षा पद्धति में मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास संभव है। इसलिए दस्तकारी की शिक्षा यांत्रिक ढंग से नहीं सिखाकर वैज्ञानिक ढंग से सिखानी होगी, ताकि बच्चे हैं।
प्रत्येक प्रक्रिया का कारण जान सकें। इस प्रारंभिक शिक्षा में घरेलू काम के साथ-साथ अपना काम आप करना भी शामिल होगा। लेखक का तर्क है कि वर्तमान पीढ़ी के बच्चों को स्वच्छता एवं स्वावलंबन की जानकारी नहीं होती । इसलिए संगीतमय कवायद के जरिये उनको अनिवार्य तालीम दी जाएगी । जिसमें अत्यन्त दूरगामी परिणाम भरे हुए हैं। इससे नगर और ग्राम के संबंधों में मधुरता आएगी तथा विषाक्त वातावरण दूर करने में मदद मिलेगी। फलतः देहाती जीवन में सुधार होगा, न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना होगी, वर्गयुद्ध का अंत हो जाएगा तथा हर कोई आत्मनिर्भर होगा और विदेशी सामानों पर आश्रित नहीं होना पड़ेगा। इससे बड़े-बड़े विशेषज्ञों की बुद्धि की जरूरत न होने के कारण एक प्रकार से जनसाधारण के भाग्य का निपटारा स्वयं उन्हीं के हाथ में रहेगा।
शिक्षा का ध्येय चरित्र निर्माण
शिक्षा का ध्येय चरित्र निर्माण-गाँधीजी ने चरित्र निर्माण को शिक्षा का ध्येय माना है। उनका तर्क है कि इससे साहस, बल, सदाचार तथा आत्मोत्सर्ग की शक्ति का विकास करने में मदद मिलेगी। यह साक्षरता से ज्यादा महत्वपूर्ण है। लेखक का यह भी मानना है कि यदि व्यक्ति चरित्र निर्माण करने में सफल हो जाता है तो समाज अपना दायित्व स्वयं संभाल लेगा। इससे जिम्मेदारी सौंपने में सहायता मिलेगी ।
बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा
बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा-गाँधीजी ने कहा है कि इस तरह की शिक्षा पद्धति में मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास संभव है। सारी शिक्षा किसी दस्तकारी या उद्योगों के द्वारा दी जाय। गाँधीजी ने शिक्षा का मूल ध्येय चरित्र-निर्माण को माना है। किताबी ज्ञान से कहीं बढ़कर चरित्र निर्माण का महत्त्व है। चरित्र निर्माण के बल पर ही सबल, स्वस्थ समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव है।
शिक्षा में अन्य भाषाओं का महत्त्व
शिक्षा में अन्य भाषाओं का महत्त्व-गाँधीजी अपनी भाषा और अपनी संस्कृति के अलावा विश्व की भाषाओं और संस्कृतियों के बारे में जानकारी लेने एक-दूसरे की विशेषताओं से अवगत होने की सलाह देते वे अनुवाद-कार्य पर भी विशेष जोर देते हैं ताकि बिना दूसरी भाषा के सीखे अपनी भाषा के अनुवाद में विविध विषयों की जानकारी सुगमता से मिल सके ।
विद्यार्थियों का एक ऐसा वर्ग बने जो अनुवाद कार्य कर राष्ट्र के विकास में सहायक बने । धर्म और संस्कृति के बनने में भी गाँधीजी का विचार साफ है। वे धर्म को जेलखाना के रूप में नहीं देखना चाहते हैं। वे ज्ञान-विज्ञान और विविध क्षेत्रों की जानकारी के लिए खुला वातावरण चाहते हैं। संकीर्णता के वे विरोधी हैं।
अपनी मातृभाषा और संस्कृति के प्रति सजग
अपनी मातृभाषा और संस्कृति के प्रति सजग–भारतीय लोगों का कर्तव्य बन जाता है कि वे उदारता और स्वतंत्रता के प्रति सजग रहे । अपनी मातृभाषा और संस्कृति के प्रति सजग रहकर अन्य संस्कृतियों एवं विश्व की दूसरी भाषाओं में संचित ज्ञान-भंडार से रू-ब-रू हों ।
भारतीय संस्कृति बहुजातीय और बहुधार्मिक है । यहाँ सामंजस्य की संस्कृति है। यहाँ दबाव, गुलामी का संस्कृति नहीं है। यहाँ प्रेम, त्याग, दया, सहिष्णुता, सत्य, अहिंसा पर आधारित कल्याणकारी भावनाएँ हैं। अतः शिक्षा और संस्कृति के बारे में गाँधीजी के विचार बहुमूल्य हैं।
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