संस्कृतसाहित्य लेखिकाः पाठ अर्थ

संस्कृतसाहित्य लेखिकाः पाठ का अर्थ और प्रश्न उत्तर

संस्कृतसाहित्य लेखिकाः पाठ का अर्थ और प्रश्न उत्तर – इस पोस्ट में संस्कृतसाहित्य लेखिकाः पाठ का हिंदी अर्थ और उस पाठ से महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर दिया गया है | और Objective तथा Subjective प्रश्नों का उत्तर दिया गया है |

संस्कृतसाहित्य लेखिकाः पाठ का हिंदी अर्थ


संस्कृतसाहित्य लेखिकाः पाठ का अर्थ और प्रश्न उत्तर

समाज की गाड़ी पुरुष और नारी दो चक्कों पर चलती है। साहित्य में भी दोनों का महत्व है। अभी सभी भाषाओं की साहित्य रचना में स्त्रिया भी तत्पर है और यश प्राप्त कर रही है। संस्कृत साहित्य में प्राचीन काल से ही साहित्य समृद्धि में उनका योगदान थोड़ा बहुत देखा जाता है। इस पाठ में अति प्रसिद्ध लेखिकाओं की ही चर्चा है जिससे साहित्य को पूर्णता में उनका योगदान जाना जाये ।

विशाल संस्कृत साहित्य को विभिन्न कवियों और शास्त्रकारों ने संवर्धित किया है। वैदिक काल से लेकर अब तक शास्त्रों और काव्य की रचना और संरक्षण में जिस प्रकार पुरुष दत्त चित्र रहे उसी प्रकार नारिया भी सावधान पाई जाती है| वैदिक युग में केवल ऋषि ही मंत्रद्रष्टा नही ,अपितु ऋषिकाएं भी है। ऋग्वेद में 24 और अथर्ववेद में 5 ऋषिकाएं मंत्रदर्शनवती कही गई है| जैसे-यामी अपाला,उर्वशी,इंद्राणी,वागाम्भ्रिणी इत्यादि।

वृहदारणय उपनिषद में याग्वाल्क्य की पत्नी मैत्रायी दार्शनिक रूचि की थी| जिसे याग्वाल्क्य आत्मतत्व अर्थात दर्शन की शिक्षा देते थे। जनक की सभा में शास्त्रार्थ कुशल गार्गी वाचक्न्वी रहती थी| महाभारत में भी जीवन पर्यंत वेदांत का अनुसरण अनुशीलन परंपरा का सुलभ वर्णन उपलब्ध है।

लौकिक संस्कृत साहित्य में प्रायः 40 कवित्रीयों की करीब 150 स्फुट पद जहां तहां मिलते हैं। उनमें विज्यंका प्रथम कल्पा है। वह श्याम वर्ण की थी,इस पद से स्पष्ट होता-

इस श्लोक में कवियत्री विज्यंका  ने बड़े गर्व से अपने रूप माधुर्य को उद्घोषित कर दंडी की कथन सर्व शुक्ला सरस्वती को गलत कही है।
उसका समय अष्टमशतक अनुमानतः कहा जाता है| चालुक्यवंशी चंद्रादित्य की रानी विजय्भाटारिका ही विज्यंका है ,ऐसा बहुत लोग मानते हैं। किंतु शिला भटारिका ,देव कुमारीका, रामभाद्रमा इत्यादि दक्षिण भारत की संस्कृति लेखिका कवयित्री,अपने स्फुट पदों के लिए प्रसिद्ध है।

उसका समय अष्टमशतक अनुमानतः कहा जाता है| चालुक्यवंशी चंद्रादित्य की रानी विजय्भाटारिका ही विज्यंका है ,ऐसा बहुत लोग मानते हैं। किंतु शिला भटारिका ,देव कुमारीका, रामभाद्रमा इत्यादि दक्षिण भारत की संस्कृति लेखिका कवयित्री,अपने स्फुट पदों के लिए प्रसिद्ध है।

विजयनगर राज्य के नरेश लोग संस्कृत भाषा के संरक्षण के प्रयास के लिए विख्यात है। उनके अंतपुर में भी संस्कृत रचना में कुशल रानियां होती थी। कंपनराय की (चौदहवीं शताब्दी) रानी गंगा देवी मथुराविजयम नाम का महाकाव्य अपने स्वामी (मदुरई) विजय घटना का आश्रय लेकर रचना की थी| इसमें अलंकारों का सुंदर प्रयोग हृदय वार्जक है। उसी राज्य में 16 वीं शतक में शासन करते हुए अच्युतराय की रानी तिरुमलंबा-वरदाअंबिकापरिणय नाम का चंपूकाव्य की रचना की। इसमें संस्कृत गद्य की छटा ,समस्तपदावलीयां,ललित पद विन्यास से बहुत सुंदर है। संस्कृत साहित्य में प्रयुक्त अत्यंत लंबी पदावलीयां नहीं प्राप्त होते हैं।

आधुनिक काल में संस्कृत लेखिकाओं में पंडिता क्षामाराव (1890 से 1953 ईस्वी) नाम की विदुषी अत्यंत प्रसिद्ध है| उन्होंने अपने पिता शंकर पांडुरंग, पंडित जो महान विद्वान थे, उनका जीवन चरित्र शंकरचरितम की रचना की। गांधी दर्शन से प्रभावित उन्होंने सत्याग्रहगीता,मीरालहरी कथामुक्ततली,विचित्र परिषद यात्रा,ग्रामज्योति इत्यादि अनेक गधों और पद के ग्रंथों की रचना की। वर्तमान काल में लेखन में रत कवित्रीयों में पुष्पादीक्षित वनमोला, भवालकर,मिथिलेश कुमारी मिश्र इन दिनों संस्कृत साहित्य की प्रतिपूर्ति कर रही है

संस्कृतसाहित्य लेखिकाः पाठ से Subjective Questions –

Q1. ‘संस्कृतसाहित्य लेखिकाः’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर-  ‘संस्कृतसाहित्य लेखिकाः’पाठ से लेखक का स्पष्ट संदेश मिलता है कि महिला और पुरुष दोनों के योगदान से ही समाज की गाड़ी चलती है | साहित्य में भी दोनों का सामान महत्व है। इस पाठ में जैसे-यामी अपाला,उर्वशी,इंद्राणी,वागाम्भ्रिणी,विज्यंका एवं क्षामाराव जैसी अति प्रसिद्ध विदुषी लेखिकाओं की चर्चा है।                                                        

 Q2. संस्कृत साहित्य में स्त्रियों की क्या भूमिका है पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।  

संस्कृत साहित्य में महिलाओं के योगदान का वर्णन करें। [15(A)I]

 उत्तर-   समाज रूपी गाड़ी पुरुष एवं स्त्रियों के द्वारा चलती है। संस्कृत साहित्य में प्राचीन काल से ही साहित्य समृद्धि में स्त्रियों की भूमिका सराहनीय है। वैदिक युग में मंत्रों के वाचक न केवल ऋषि अपितु ऋषिकाएं भी है। यामी,अपाला,इंद्राणी,उर्वशी स्त्रियों के मंत्र दर्शन आज भी नक्षत्र की भांति दीप्तिमान है। याज्ञवल्क्य की पत्नी ने स्वयं अपने पति से आत्मतत्व की शिक्षा ली। जनक की सभा को बढ़ाने वाली गार्गी  का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। लौकिक साहित्य में भी विदुषी क्षमाराव अत्यंत प्रसिद्ध है।                                    

Q3. संस्कृत साहित्य में दक्षिण भारतीय महिलाओं के योगदान का वर्णन करें?

उत्तर- चालुक्य वंश की महारानी विजय्भाटारिका लौकिक संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लगभग 40 दक्षिण भारतीय महिलाओं ने 150 संस्कृत काव्य की रचना की है। इन महिलाओं में गंगा देवी, तिरुमलंबा,शीलाभट्टारीका देवकुमारीका, रामभद्रआंबा आदि प्रमुख हैं| इनकी रचनाएं पद्ध में है।                                                                                              

Q4.  संस्कृत साहित्य में विजयनगर राज्य के योगदान का वर्णन करें|                            [12(C)22(A)I]

उत्तर- विजयनगर राज्य के राजाओं ने संस्कृत साहित्य के संरक्षण के लिए जो प्रयास किए थे वह सर्वविदित है। उनके अंतपुर में भी संस्कृत रचना में कुशल रानियां हुई| इसमें कंपन राय की रानी गंगादेवी तथा अच्युतरायकी रानी तिरुमलंबा प्रसिद्ध। इन दोनों रानियों की रचनाओं में समस्त पदावली और ललित पद विन्यास के कारण संस्कृत गध 

शोभित होता है।                                                            

Q5.  संस्कृत में पंडिता क्षामाराव के योगदान का वर्णन करें।

 संस्कृत साहित्य के संवर्धन में पंडिता क्षामाराव के योगदान का उल्लेख करें |                                                              [18(A)I,21(A)I]

उत्तर-   आधुनिक काल के लेखिका क्षमाराव ने अपने पिता शंकर पांडुरंग,जो महान विद्वान थे| उनका जीवन चरित्र शंकरचरितम की रचना संस्कृत में की। साथ ही उन्होंने सत्याग्रहगीता, मीरालहरी,कथा मुक्तावली,विचित्रपरिषदयात्रा,ग्रामज्योति इत्यादि अनेक गधों पद ग्रंथों की रचनाकर संस्कृत को धन्य किया।                                                               

 Q6. तिरुमलंबा किसकी रानी थी और उसने किस प्रकार के काव्य की रचना की थी |                                                                     [19(C)]

उत्तर- अच्युतराय की रानी तिरुमलंबा-वरदाअंबिकापरिणय नाम का चंपूकाव्य की रचना की। इसमें संस्कृत गद्य की छटा , समस्तपदावलीयां,ललित पद विन्यास से बहुत सुंदर है।   

Q7. विज्यंका की विशेषताओं का वर्णन करें।                     [21(A)II]

 विज्यंका को सर्व शुक्ला सरस्वती क्यों कहा गया है? [20(A)I]                                

उत्तर-   विज्यंका श्याम वर्ण की थी। किंतु उनकी कृतियां ज्योतिर्मय थी। नीलकमल की पखुन्डियों की तरह विज्यांका अपनी रचना में अद्भुत लेखन कला की आभा बिखेरती है। एक असाधारण लेखिका की पराकाष्ठा से प्रभावित होकर दंडी ने उन्हें सर्वशुक्ला सरस्वती कहा है।

  Q8. विज्यांका कौन थी? और उनका समय क्या माना जाता है ? [20(A)II]

 उत्तर-  विज्यांका लौकिक संस्कृत साहित्य की प्रथम कल्पा है| उनका काल आठ सौ  के आसपास माना जाता है।

Q9.  आधुनिक काल के किन्हीं तीन संस्कृत लेखिकाओं के नाम लिखें।?                        [20(A)II]       

उत्तर-   पंडिता क्षामाराव,पुष्पादीक्षित,मिथिलेशकुमारी आधुनिक काल की संस्कृत लेखिकायें हैं।                                                                                    

 Q10. पंडित क्षमाराव की प्रमुख कृतियों के नाम लिखें।    [22(A)II]                                                           

 उत्तर-  पंडिता क्षामारावकी प्रमुख कृतियां शंकरचरितम, सत्याग्रहगीता,मीरालहरी,कथामुक्तावली,विचित्रपरिषदयात्रा, ग्रामज्योति आदि है।                                                                                                      

Q11.  मधुराविजयम महाकाव्य का वर्ण्य विषय क्या है?     [22(A)I]               

उत्तर-  14 वीं शताब्दी के अनुमान में कंपनराय की रानी गंगादेवी ने अपने स्वामी की मदुरै विजय घटना चक्र पर आधारित मधुराविजयम नामक महाकाव्य की रचना की | जिसमें अलंकारों का समावेशन आकर्षक है।                                                                  

Q12.  अथर्ववेद में किन पांच मंत्रदर्शनवती ऋषिकाओं का उल्लेख है|                                                                                     [22(A)II]

उत्तर-  अथर्ववेद में यामी,अपाला,उर्वशी,इंद्राणी और वागाम्भ्रिणी आदि मंत्रदर्शनवती ऋषिकाओं का उल्लेख है।                        

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