मिडिल क्लास कौन है? निम्न मध्यम वर्ग उच्च वर्ग की परिभाषा में बदलाव पढ़े नया आंकड़ा

मिडिल क्लास कौन है? निम्न मध्यम वर्ग उच्च वर्ग की परिभाषा में बदलाव पढ़े नया आंकड़ा

मिडिल क्लास कौन है? निम्न मध्यम वर्ग उच्च वर्ग की परिभाषा में बदलाव पढ़े नया आंकड़ा- आम चुनावों की वोटिंग खत्म हो गई है। एग्जिट पोल्स के अनुमान भी ना गए हैं। राजनीतिक दलों ने विभिन्न आ जातियों, धर्मों को साधने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। मगर देश का सबसे बड़ा वर्ग यानी मिडिल क्लास (मध्यम वर्ग) इस बार भी राजनीतिक विमर्श, वादों और गारंटियों की परिधि में नहीं आ सका। जिस ‘न्याय’ की उसे उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हुई। किसी भी दल या नेता ने इस वर्ग का नाम तक नहीं लिया, जबकि भारत की कुल आबादी में से हर तीसरा व्यक्ति मिडिल क्लास का प्रतिनिधित्व करता है।

पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (प्राइस) के एक सर्वे के अनुसार भारत की 31 फीसदी आबादी मध्यम वर्ग यानी मिडिल क्लास है। प्राइस के इन्हीं आंकड़ों पर आधारित इंडियाज सिटीजन एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट ‘द राइज ऑफ इंडियाज मिडिल क्लास’ का अनुमान है कि अगर अगले ढाई दशकों के दौरान भारत में विकास दर 6 से 7 प्रतिशत के बीच बनी रही तो देश में मिडिल क्लास का आकार साल 2047 तक दोगुना होकर 61 फीसदी तक पहुंच जाएगा। यानी तब की कुल अनुमानित आबादी 1.66 अरब में से करीब एक अरब लोग मिडिल क्लास में शामिल होंगे।

देश, काल और परिस्थिति के मुताबिक मिडिल क्लास की परिभाषा बदलती रहती है। पारंपरिक रूप से दुनिया सहित भारत में दो ही वर्ग हुआ करते थे। एक शासक, जबकि दूसरा वर्ग किसान और मजदूर। लेकिन भारत में अंग्रेजों के आने के बाद एक नए वर्ग का जन्म हुआ। पहली बार औपचारिक शिक्षा पाने वाला यह वर्ग न तो शासक था और न ही किसान-मजदूर। पढ़- लिखकर अंग्रेजों के लिए काम करने वाले क्लर्क, सेना के जवानों, छोटे अफसरों, शिक्षकों, वकीलों ने भारत में मिडिल क्लास की नींव रखी।

हालांकि 1947 तक भी इनकी संख्या सिर्फ 2 फीसदी थी, लेकिन जैसे-जैसे देश में आर्थिक तरक्की होती गई, शासक वर्ग की संख्या तेजी से नीचे आई और गरीब मजदूर खेतों से निकलकर मिडिल क्लास में शामिल होते गए। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखें तो समाज के इस नए वर्ग को परिभाषित करते हुए हम कह सकते हैं कि यह ऐसा सामाजिक और आर्थिक वर्ग है, जो निम्न वर्ग की तुलना में अधिक समृद्ध और उच्च वर्ग की तुलना में कम समृद्ध लोगों से बना है।

आमदनी और खुशहाली के पारस्परिक रिश्ते पर हुई एक रिसर्च का निष्कर्ष है कि एक मिडिल क्लास व्यक्ति अमीर और गरीब दोनों से ज्यादा खुश रहता है। डेनियल कोहनमैन और एंगस डेल्टन ने अपनी रिसर्च में पाया कि सालाना 75 हजार डॉलर (हर महीने करीब 6.25 लाख रुपए) कमाई होने तक लोगों की खुशी बढ़ती जाती है, लेकिन कमाई के इस स्तर को पार करने के बाद यही खुशी तनाव में बदलने लगती है। इसलिए जरूरत से कम और जरूरत से ज्यादा पैसा हमारी खुशहाली को कम करता है। यानी गरीब और अमीर की तुलना में मध्यमवर्गीय व्यक्ति ज्यादा खुश रहता है।

मिडिल-क्लास’ शब्दावली का पहली बार प्रयोग 1913 में यूके रजिस्ट्रार-जर्नल की रिपोर्ट में हुआ था। सांख्यिकीविद टी.एच.सी. स्टीरवेन्सन ने मिडिल क्लास शब्दावली का उपयोग करते हुए उसे अपर क्लास और वर्किंग क्लास के बीच की श्रेणी निरुपित किया था। इस वर्ग में उन्होंने प्रोफेशनल्स, मैनेजर्स और सीनियर सिविल सर्वेट्स को शामिल किया था।

मिडिल-क्लास किसे माना जाए, इसका कोई अधिकृत पैमाना नहीं है, लेकिन अलग-अलग संस्थानों ने इसके अलग-अलग मानदंड तैयार किए हैं। पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी ने सालाना 5 से 30 लाख रुपए (यानी 41,600 से लेकर 2.5 लाख रुपए मासिक आय) कमाने वाले परिवारों को मिडिल क्लास में रखा है। इकोनॉमिस्ट ने भी इसकी एक परिभाषा दी है। इसके अनुसार मिडिल क्लास वह है, जो अपनी तमाम दैनिक जरूरतों (मसलन भोजन, वस्त्र, मकान, पेट्रोल, इंटरनेट, मोबाइल, आउटिंग आदि) पर खर्च करने के बाद करीब एक तिहाई हिस्सा भविष्य में खर्च के लिए बचा लेता है।

स्मार्टएसेट रिपोर्ट’ और ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ ने अमेरिका में मिडिल क्लास की गिनती के लिए एक फॉर्मूला अपनाया है। इस फॉर्मूले में देश की प्रति व्यक्ति आय की दो तिहाई से लेकर दोगुनी आमदनी वाला इंसान मिडिल क्लास में आएगा। भारत की औसत प्रति व्यक्ति आय 1.97 लाख रुपए है। तो इस फॉर्मूले के मुताबिक भारत में सालाना 1.31 लाख रुपए से लेकर 3.94 लाख रुपए कमाने वाला व्यक्ति मिडिल क्लास में आएगा। इस तरह औसतन चार लोगों के एक परिवार के हिसाब से 5.24 लाख रुपए से लेकर 15.76 लाख रुपए तक की आमदनी वाले परिवार मिडिल क्लास में कहलाएंगे।

मिडिल क्लास अपने आप में एक इंद्रधनुषी गुलदस्ता है। यहां विभिन्न जातियों, धमों और व्यवसायों से जुड़े लोग शामिल हैं। इसी में सामाजिक तौर पर आरक्षण प्राप्त लोग और आरक्षण की परिधि से बाहर के लोग, दोनों शामिल होते हैं। इसलिए राजनीतिक विमर्श में इस वर्ग में शामिल लोगों की अलग-अलग स्तरों पर बात तो होती है और इनको लेकर चिंता भी जताई जाती है। लेकिन एक वर्ग के तौर पर सियासी विमर्श से मिडिल क्लास बाहर रहा है। ऐसे में इस वर्ग की क्या चिंता है, इसे कुछ सर्वे के जरिए समझा जा सकता है। इन सर्वे के अनुसार इस वर्ग की सबसे बड़ी चिंता बेरोजगारी की समस्या हैः

  • सीएसडीएस और नई दिल्ली स्थित शोध संस्थान लोकनीति द्वारा 10 हजार लोगों पर किए गए एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 62% उत्तरदाताओं ने कहा कि पांच साल पहले की तुलना में अब नौकरी पाना कठिन हो गया है।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और मानव विकास संस्थान द्वारा प्रकाशित ‘भारत रोजगार रिपोर्ट’ में पाया गया कि भारत के शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी विशेष रूप से अधिक है। 15 से 29 वर्ष की आयु के युवाओं की संख्या सभी बेरोजगार लोगों का 83% है।

प्राइस ने अपने सर्वे में इस बात का भी परीक्षण किया था कि देश में आय वर्ग के अनुसार क्या स्थिति है। इसके अनुसार 10 लाख से अधिक आबादी वाले 63 शहरों में ही भारत के 27 फीसदी मध्यम वर्ग और 43 फीसदी उच्च वर्ग के लोग निवास करते हैं। देश की कुल आय का 29 फीसदी हिस्सा इन्हीं शहरों से पैदा होता है। कुल 27 फीसदी खर्च भी ये शहर करते हैं और कुल बचत का 38 फीसदी भी यहीं से आता है।

देश का हर तीसरा व्यक्ति मिडिल क्लास का प्रतिनिधित्व करता है। हाल ही में आई रिपोर्ट ‘द राइज ऑफ इंडियाज मिडिल क्लास’ के अनुसार अगले 25 साल में 61% लोग इसी क्लास में होंगे। लेकिन इसके बावजूद आम चुनावों में सियासी दलों की चिंताओं से यह वर्ग नदारद ही रहा…

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