कक्षा 10वीं इतिहास PDF Notes- हिन्द- चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन – कक्षा 10वीं इतिहास PDF Notes
अध्याय-3
हिंद-चीन में राष्ट्रवादी आन्दोलन
मुख्य बातें
- आज के वियतनाम, लाओस और कंबोडिया के क्षेत्र हिंद-चीन के अन्तर्गत आते हैं।
- इस देश के कुछ देशों पर चीन और कुछ पर हिन्दुस्तान का सांस्कृतिक प्रभाव था।
- चौथी शताब्दी में भारतवंशी शासक ने कंबूज राज्य की स्थापना की थी।
- 12वीं शताब्दी में राजा सूर्यवर्मा द्वितीय ने कंबोडिया में अंकोरवाट मंदिर का निर्माण करवाया था।
व्यापारिक कंपनियों का आगमन और फ्रांसीसी प्रभुत्व
- सर्वप्रथम पुर्तगाली व्यापारियों ने 1510 ई0 में मलक्का को व्यापारिक केन्द्र बनाकर हिंद-चीन देशों के साथ व्यापार प्रारंभ किया ।
- पुर्तगाल के बाद स्पेन, डच, इंगलैंड और फ्रांसीसियों का आगमन हुआ।
- 20वीं शताब्दी के आरंभ तक सम्पूर्ण हिंद-चीन फ्रांस की अधीनता में आ गया ।
- हिंद-चीन में बसने वाले फ्रांसीसी “कोलोन” कहे जाते थे।
फ्रांस द्वारा हिंद-चीन में उपनिवेश स्थापना के उद्देश्य
- भारत में फ्रांसीसियों की शक्ति कमजोर हो रही थी। चीन में उनकी प्रतिद्वन्द्विता मुख्य रूप से इंगलैंड से थी। अतः हिंद-चीन में अपनी उपस्थिति मजबूत करना चाहते थे। अपने देश के औद्योगीकरण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति एवं उत्पादित वस्तुओं के लिए बाजार की आवश्यकता थी।
- 17वीं शताब्दी में बहुत से फ्रांसीसी व्यापारी हिंद-चीन में पहुँच चुके थे। फ्रांसीसी सेना ने पहली बार 1858 ई० में वियतनाम में प्रवेश किया। धीरे-धीरे अस्सी के दशक के मध्य तक उन्होंने देश के उत्तरी इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया। फांस-चीन युद्ध के बाद उन्होंने टोंकिन एवं अनाम पर भी कब्जा जमा लिया। इस प्रकार 20वीं शताब्दी के आरंभ तक पूरा हिंद-चीन फ्रांस के अधीन में आ गया।
- अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए फ्रांसीसियों ने सर्वप्रथम व्यापारिक नगरों, बंदरगाहों, किसानों एवं मजदूरों का शोषण करना शुरू किया। शोषण के साथ-साथ फांसीसियों ने वहाँ के विकास के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए :-
- कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए नहरों का एवं जल-निकासी का समुचित प्रबंध किए।
- दलदली भूमि, जंगलों आदि में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाने लगा।
- इन प्रयासों के फलस्वरूप 1931 ई० तक वियतनाम विश्व का तीसरा बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया।
- रबड़ बगानों, फर्मों एवं खानों में मजदूरों से एकतरफा अनुबंध व्यवस्था पर काम लिया जाता था। इस व्यवस्था के अंतर्गत मजदूरों को कोई अधिकार नहीं था, जबकि मालिक को असीमित अधिकार प्राप्त था।
हिन्द-चीन में राष्ट्रीयता का विकास
- फांसीसियों और उनके वर्चस्व के विरूद्ध पूरे हिंद-चीन के लोगों ने जमकर संघर्ष किया और यहीं से हिंद-चीन में राष्ट्रीयता की भावना बलवती होने लगी।
- इसी सिलसिले में 1903 ई० फान-बाई-चाउ ने दुई-तान होई नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसके नेता कुआंग दें थे।
- फान-बाई-चाउ ने हिस्ट्री ऑफ लॉस ऑफ वियतनाम की रचना कर राष्ट्रवादी चेतना को विकसित करने में मदद की। .
- 1971 ई० में न्यूगन-आई-क्योक (हो ची मिन्ह) नामक एक वियतनामी छात्र ने साम्यवादियों का एक गुट बनाया। 1952 ई0 में इन्होंने वियतनामी कांतिकारी दल का गठन किया। 1930 ई० में वियतनाम के बिखरे राष्ट्रवादी गुटों को एकजूट कर वियतनाम कांग-सान-देंग अर्थात वियतनाम कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की।
- जोन्गुएन-आई ने अनामी दल की स्थापना की थी। . हो ची मिन्ह मार्ग-यह मार्ग हनोई से चलकर लाओस, कंबोडिया के सीमा से गुजरता हुआ दक्षिणी वियतनाम तक जाता था, जिससे सैकड़ों कच्ची-पक्की सड़के जुड़ी थी।
द्वितीय विश्व युद्ध और वियतनामी स्वतंत्रता
- द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिंद-चीन में एक तरह का द्वैध शासन था, जिसमें सत्ता जापानियों के हाथ थी एवं प्रशासनिक व्यवस्था फ्रांसीसियों के जिम्मे। इसके विरूद्ध हो ची मिन्ह के नेतृत्व में देश भर के राष्ट्रवादियों ने वियतमिन्ह (वियतनाम स्वतंत्रता लीग) की स्थापना कर छापामार युद्ध नीति का सहारा लिया।
- अंततः वियतनाम के राष्ट्रवादियों ने वियतमिन्ह के नेतृत्व में लोकतंत्रीय गणराज्य सरकार की स्थापना 2 सितम्बर 1945 ई0 को करते हुए, वियतनाम की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। इस सरकार का प्रधान हो ची मिन्ह बनाए गए।
- वियतनाम की स्वतंत्रता के समय अन्नाम का शासक (राजा) बाओदाई था।
- 6 मार्च 1946 को फ्रांस एवं वियतनाम के बीच हनोई समझौता हुआ, जिसके तहत फांस ने वियतनाम को गणराज्य के रूप में एक स्वतंत्र इकाई माना।
- 1950 ई0 में हिंद-चीन की स्थिति पुनः जटिल हो गई। इसी कम में दिएन-विएन-फू पर गुरिल्ला सैनिकों ने आक्रमण किया, जिसमें फ्रांस बुरी तरह पराजित हुआ ।
- हिंद-चीन में बढ़ रहे साम्यवादी विचारों को रोकने एवं दमन करने के लिए अमेरिका ने वहां हस्तक्षेप करना प्रारंभ किया।
द्वितीय विश्व युद्ध और वियतनामी स्वतंत्रता – 10वीं इतिहास PDF Notes
- मई 1954 ई0 में जेनेवा में हिंद-चीन समस्या पर वार्ता हेतु सम्मेलन बुलाया गया, जिसे जेनेवा समझौता कहा जाता है। यह समझौता रूस और अमेरिका के बीच हुआ, जिसके तहत पूरे वियतनाम को दो भागों में बाँट दिया गया।
- होआ-होआ आन्दोलन यह एक बौद्धिक धार्मिक क्रांतिकारी आन्दोलन था, जो 1939 ई0 में प्रारंभ हुआ था। इस आन्दोलन के नेता हुइन्ह-फू-सो था। इस आन्दोलन के अनुयायी कांतिकारी उग्रवादी घटनाओं को अंजाम देते थे।
- 1964 ई0 में स्वतंत्र राज्य बनने के बाद कंबोडिया ने संवैधानिक राजतंत्र को स्वीकार किया। नरोत्तम सिंहानुक वहाँ के शासक बने, जिन्हें लगातार अमेरिका से संघर्ष करना पड़ा।
- 1978 ई० में नरोत्तम सिंहानुक के सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने के बाद कंबोडिया का नाम कम्पूचिया कर दिया गया।
- जेनेवा समझौता के फलस्वरूप उत्तरी वियतनाम में साम्यवादी सरकार थी और दक्षिणी वियतनाम पूँजीवादी सरकार थी। 5 अगस्त 1964 ई0 को अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम पर आक्रमण किया। इस युद्ध में अमेरिका ने रासायनिक हथियारों-नापाम, ऑरेंज एजेंट एवं फास्फोरस बमों का इस्तेमाल किया।
- नापाम – यह एक तरह का रासायनिक ऑर्गेनिक कम्पाउंड है जो अग्निबमों में गैसोलिन के साथ मिलकर एक मिश्रण तैयार करता था जो त्वचा से चिपक जाता और जलता रहता था।
- एजेंट ऑरेंज – यह एक ऐसा जहर था जिससे पेड़ों की पत्तियाँ तुरंत झुलस जाती थी एवं पेड़ मर जाता था। जंगलों को खत्म करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था। इसका नाम ऑरेंज पट्टियों वाले ड्रमों में रखे जाने के कारण पड़ा। अमेरिका इनका उपयोग जंगलों के साथ खेतों और आबादी दोनों पर जमकर किया।
माई-ली गाँव की घटनाः
यह दक्षिण वियतनाम के एक गाँव था, जहाँ के लोगों को वियतकांग समर्थक मान अमेरिकी सेना ने पूरे गाँव को घेर कर पुरूषों को मार डाला, औरतों बच्चियों को बंधक बनाकर कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया, फिर उन्हें भी मार कर पूरे गाँव में आग लगा दिया। लाशों के बीच दबा एक बूढ़ा जिंदा बच गया था, जिसने इस घटना को उजागर किया।
- माई-ली गाँव की घटना के बाद अमेरिकी सेना की आलोचना पूरे विश्व में होने लगी। प्रसिद्ध दार्शनिक रसेल ने एक अदालत लगाकर अमेरिका को वियतनाम युद्ध के लिए दोषी करार दे दिया। अमेरिका पर वियतनाम समस्या के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा था। तात्कालिक राष्ट्रपति निक्सन ने वियतनाम में शांति के लिए पाँच सूत्री योजना की घोषणा की-
- हिंद-चीन की सभी सेनाएँ युद्ध बंद कर यथास्थान पर रहें ।
- युद्ध विराम को देख-रेख अन्तर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक करेंगे ।
- इस दौरान कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न नहीं करेगा।
- युद्ध विराम के दौरान सभी तरह की लड़ाईयाँ बंद रहेगी।
- युद्ध विराम का अंतिम लक्ष्य समूचे हिंद-चीन में संघर्ष का अंत होगा।
- अंततः 27 फरवरी 1973 ई० को पेरिस में वियतनाम युद्ध के समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर हो गया, समझौते की मुख्य बातें थी- युद्ध समाप्ति के 60 दिनों के अन्दर अमेरिकी सेना वापस हो जाएगी, उत्तर एवं दक्षिण वियतनाम परस्पर सलाह करके एकीकरण का मार्ग खोजेंगे।
- इस प्रकार अमेरिका के साथ चला आ रहा युद्ध समाप्त हो गया एवं अप्रैल 1975 ई0 में उत्तरी एवं दक्षिणी वियतनाम का एकीकरण हो गया।
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