2025 में करना चाहते हैं तरक्की | तो अपने राशिफल के अनुसार आज ही करें ये काम:-ग्र हों की चाल और उनके गोचर का ज्योतिष शास्त्र में गहन महत्व है, यह न केवल मानव जीवन, बल्कि प्रकृति और समाज पर भी प्रभाव डालता है. सूर्य, चंद्र, वृहस्यति, शनि, बुध, शुक्र, मंगल, राहु और केतु जैसे ग्रह समय-समय पर राशि परिवर्तन करते हैं, जिसे गोचर कहते हैं.
इन गोचर का प्रभाव सभी 12 राशियों पर भिन्न-भिन्न रूप से पड़ता है.
राहु और केतु सदैव वक्री चाल चलते हैं और यह कभी मार्गी अवस्था में नहीं आते हैं. अन्य मुख्य सात ग्रहों में सूर्य और चंद्रमा सदैव मार्गी अवस्था में रहते हैं और यह कभी भी चक्री नाहीं होते हैं, लेकिन अन्य पांच ग्रह यानी कि मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि समय-समय पर मागी से चक्री अवस्था में और चक्री से मार्गी अवस्था में आ जाते हैं. वर्ष 2025 इस दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई बड़े ग्रहों का गोचर और वक्री अवस्था इस वर्ष होने जा रहा है, जो मानव जीवन पर अपना गहरा प्रभाव डालेंगे. आइए, विस्तार से जानते हैं वर्ष 2025 में गुरु और शनि की चाल, उनके गोचर की तिथियां.
वर्ष 2025 में गुरु और शनि का गोचर
वर्ष 2025 में वाहों की चाल और गोचर सभी राशियों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालेंगे. इनके प्रभाव में आने वाले जातकों के लिए यहां कुछ उपाय बताये गये है, जो न केवल वग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद करेंगे, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा को भी बढ़ावा देंगे. इन उपायों के माध्यम से आप अपने जीवन को संतुलित और समृद्ध बना सकते हैं.
विशेष घटनाएं
- शनि का प्रभाव: 29 मार्च, 2025 को शनि मीन राशि में में प्रवेश करेंगे, जो बृहस्पति की चाल में भी प्रभाव डालेंगे.
- राहु का गोचर : 28 मई, 2025 करें राहू मीन से कुंभ राशि में प्रवेश करेगा, जो बृहस्पति के साथ युति बनाते हुए नयीं चुनौतियां ला सकता है.
शनि का गोचर
कर्मफलदाता शनि सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह माने जाते हैं और वह एक राशि में करीच ढाई वर्ष तक रहते हैं. ऐसे में एक राशि चक्र पूरा करने में करीब 30 साल का वक्त लग जाता है. इनका गोचर धीमा होता है और इसका प्रभाव गहरा और दीर्घकालिक होता है.
- शनि 29 मार्च, शनिवार को रात 11:01 बजे कुंभ राशि से मीन राशि में आयेंगे.
- शनि मीन राशि में 13 जुलाई, 2025 को सुबह 9:36 बजे वक्री हो जायेंगे और करीब 138 दिन वक्री रहने के बाद 28 नवंबर को मार्गी होंगे.
- शनि के उल्टी चाल से चलने से इन राशियों को लाभ मिलने के प्रबल योग बन रहे हैं.
शनि की साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव
- साडे लाती मीन, कुंभ और मकर राशि पर प्रभाव रहेगा.
- बैस्या कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
बृहस्पति का गोचर
बृहस्पति यानी गुरु धन, ज्ञान, धर्म और विवाह का कारक ग्रह है. इसका गोचर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है. वर्ष 2025 में बृहस्पति (गुरु) 14 मई, बुधवार को रात 11:20 बजे से अतिचारी अवस्था में रहेंगे. इस दौरान वे वृषभ राशि से मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे और अपनी चाल को तीन गुना तेज कर देंगे.
अतिचारी अवस्था में ग्रह तेज गति से राशि बदलते हैं, फिर वक्री होकर उसी राशि में लौटते हैं और अंतत: मार्गी होकर अगली राशि में प्रवेश करते है, इस दौरान 18 अक्तूबर, शनिवार को रात 09:39 बजे कर्क राशि में और 05 दिसंबर, शुक्रवार को दोपहर 03:38 बजे मिथुन राशि मैं गोचर करेंगे, वह स्थिति 8 वर्षों तक प्रभावी रहेगी, जिससे वैश्विक और व्यक्तिगत स्तर पर कई बदलाव देखने को मिलेंगे.
राहु और केतु का गोचर
राहु और केतु एक छाया ग्रह है और यह भौतिक सुख, आप्रत्याशित घटनाएं, छल-कपट और मानसिक भ्रम का प्रतीक होता है. यह मानसिक स्थिति, करियर और व्यक्तिगत रिश्तों पर असर डालता है. राहु के विपरीत केतु आध्यात्मिकता त्याग, मुक्ति और अनजाने डर का प्रतीक है. यह आध्यात्मिक उन्नति, करियर और मानसिक स्थिति में बदलाव लाता है. राहु और केतु सदैव चक्री चाल चलते हैं और यह कभी मार्गी अवस्था में नहीं आते है,
- राहु और केतु लगभग 18 महीनों में एक बार राशि परिवर्तन करते हैं.
- राहु 18 मई, रविवार को शाम 04:30 बजे कुंभ राशि में में प्रवेश करेंगे.
- केतु 18 मई, रविवार को शाम 04:30 बजे सिंह राशि में प्रवेश करेंगे.
प्रभावित राशियों के लिए किये जाने वाले विशेष उपाय
ज्योतिषीय प्रभावों को संतुलित करने और गोचर के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए उपाय अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं. वर्ष 2025 में ग्रहों के गोचर से प्रभावित राशियों के लिए कुछ उपाय अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं.
मेष, सिंह, और धनु
(सूर्य और बृहस्पति से प्रभावित)
सूर्य और बहस्पति के प्रभाव से ये राशियां लाभकारी स्थितियों का सामना करेंगी, लेकिन आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता को बनाये रखने के लिए इन उपायों का पालन करें:
- प्रतिदिन सूर्य को अध्र्घ्य दें और ‘ॐ सूर्याय नमः मंत्र का जाप करें,
- पीला भोजन (हल्दी का दूध) ग्रहण करें.
- गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करे और पीपल के पेड़ के नीचे जल दें.
मीन और कन्या
(राहु-केतु से प्रभावित)
राहू और केतु के गोचर के प्रभाव को शांत करने और मानसिक शांति बनाये रखने के लिए ये उपाय करें:
- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और बजरंग बली की पूजा करें,
- राहु-केतु से जुड़े दोषों को कम करने के लिए रात्रि में सफेद चंदन का तिलक लगाएं.
- ‘ॐ राहवे नम:’ और ‘ॐ केतवे नमः मंत्र का नियमित जाप करें,
मकर और कुंभ
{शनि से प्रभावित}
शनि के गोचर और साढ़े साती का प्रभाव इन राशियों के जातकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. दुष्प्रभाव को शांत करने के लिए
- जरूरतमंदों को काले कपड़े, काले तिल, या लोहे की वस्तुएं दान करें,
- ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करे.
- पीपल के वृक्ष की पूजा करें व शनिवार को उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक रखें.
मिथुन और तुला
(बुध और शुक्र से प्रभावित)
बुध और शुक्र के गोचर से संवाद, व्याधार और संबंधों में उतार-चढ़ाव हो सकते हैं. इनके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए
- बुधवार को हरे मूंग या साबुत धनिया का दान करें.
- “ॐ बुं बुधाय नमः’ मंत्र का जाप करें,
- रिश्तों में सुधार के लिए सफेद फूलों का दान करें और सफेद वस्त्र पहने.
वृषभ और वृश्चिक
(शुक्र और मंगल से प्रभावित)
शुक्र और मंगल के प्रभाव से ऊर्जा और भावनात्मक स्थिरता में सुधार के इन राशियों के जातकों को निम्न उपाय करना चाहिए.
- मंगल के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए मंगलवार को हनुमान की पूजा करें.
- लाल मसूर का दान करें और ‘ॐ अं अंगारकाय नमः’ मंत्र का जाप करें,
- रोजाना माता दुर्गा की आराधना करें और *श्री दुर्गायै नमः’ मंत्र का जाप करें.
कर्क और मीन
(चंद्रमा और राहु-केतु से प्रभावित)
चंद्रमा और राहु-केतु के प्रभाव से मानसिक शांति और अध्यात्मिक प्रगति पर ध्यान देने
की आवश्यकता है
- प्रतिदिन ध्यान और प्राणायाम का करें.
- सोमवार को शिवलिंग पर कच्चा दूध अर्पित करें और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें,
- चावल, दूध, और चांदी का दान करें,
- चंद्र ग्रहण के समय मंत्र जाप करें,
कर्क, वृश्चिक, और मकर
(वाहणों से प्रभावित)
सूर्य और चंद्र ग्रहण का प्रभाव इन राशियों पर गहरा पड़ सकता है. ग्रहण के समय पूजा- पाठ और नये कार्यों से बचें, ग्रहण के बाद स्नान कर घर में गंगाजल छिड़कें, ‘ॐ नमी भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें, गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन और वरवत्र दान करें.
ज्योतिषियों के लिए अचार संहिता
इस विद्या को जिन ज्योतिषियों ने सकारात्मक रूप से लिया, उनमें रक्त कोई ऐसी शक्ति जागृत हो जाती है कि वे इंसान को देखकर ही उसके अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का सटीक फलादेश कर सकते है जबकि नकारात्मक ढंग से सिर्फ धन अर्जित करने की कोशिश खुद ज्योतिषी के लिए कभी न कभी कष्टकारी हो जाती है, ज्योतिष विद्या का अभिशाप ऐसे लोगों को लगता है. कुछ ऐसा ही अभिशाप त्रेतायुग में मंथरा और उसके बहकावे में आने वाली कैकेई को लगा था. यह अभिशाप आज तक विद्यमान है.
समय का ध्यान
दौड़कर आये या किन्हीं कारणों से धबराये व्यक्ति का ब्लड प्रेशर स्वत बढ़ जाता है. ऐसे में कुशल चिकित्सक उसे ब्लड प्रेशर की दवा नहीं देता. कई दिनों का बीपी का चार्ट चिकित्सक बनवाता है, फिर निर्णय करता है कि बीपी का रोग है या नहीं? कुछ इसी तरह राह चलते, कुसमय में ज्योतिषी कोई फलादेश करता है तो वह अनुचित है. किसी फलादेश के लिए व्यक्ति की रुचि, सोच-विचार आदि की भी जानकारी आवश्यक होती है.
सतयुग ही नहीं, त्रेतायुग से होता आया है ज्योतिष विद्या का प्रयोग
ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत के हुत’ धातु से हुई है. जिसका अर्थ है- चमकना या प्रकाशित होना. इसमें ‘इसुन्’ प्रत्यय लगने से ‘द’ को ‘ज’ आदेश हुआ और इसके बाद ‘सुष्’ इत्यादि प्रत्यय लगकर नपुंसकलिंग एकवचन का शब्द ‘ज्योतिषम्’ बना, ज्योतिष शब्द का अर्थ है- ज्योति, अर्थात् प्रकाशपुंज.
वर्तमान समय में अनेक ग्रहों की गतिविधियों को जानने की होड़ विश्व भर लगी हुई है.
आज से तकरीबन 70-80 साल पहले आसपास की जानकारी लोगों की नहीं हो पा रही थी, जबकि कंप्यूटर युग के आर्टिफिशयल इंटिलिजेंस (AI) के दौर में उसी तरह जानकारियां सहज होती जा रहीं, जिस तरह सत्ययुग में राजा उत्तानपाद ने अपनी दो पत्नियों में एक सुनीति के पुत्र ध्रुव को जब दूसरी पत्नी सुरुचि के कहने पर अपमानित कर गोद से से हटा दिया और मायूस हुए मासूम ध्रुव की मनःस्थिति विचलित होने लगी.
तब ध्रुव की मां सुनीति ने पुत्र के उज्वल भविष्य का अध्ययन कर आदेश दिया,
‘पुत्र ध्रुव, निराश न हो. जाओ तपस्या और साधना करी, तुम्हारे भाग्य बदलने इंसान नहीं, बल्कि स्वयं नारायण (विष्णु) जो आयेंगे, उनका आशीवाद प्राप्त होना लिखा है तुम्हारे भाग्य में और तुम आकाश मंडल सप्तर्षि बनकर सृष्टि पर्यंत चमकते रहोगे.’
सतयुग ही नहीं, त्रेतायुग में महादेव की भार्या सती का सीता जी का रूप धारण करना या रावण की बहन शूर्णपखा का सुसज्जित होकर श्रीराम के पास आना तथा श्रीराम द्वारा दोनों के शरीर के आभामंडल (औरा) से वास्तविकता जान लेना ज्योतिष विद्या ही है. वास्तव में देखा जाये, तो सिद्धहस्त ज्योतिषी व्यक्ति के शरीर से निकलने वाली तरंगों के जरिये उसके स्वभाव तथा अतीत से लेकर भविष्य तक का अध्ययन कर लेता है.
आखिर जिन तरंगों (देव) के जरिये आधुनिक विज्ञान पलक झपकते अपना प्रभाव दिखा रहा है, उसी तरह ज्योतिषी भी जातक के तरंगों (वेव) का अध्ययन करता है. मां के गर्भ में आने के बाद शिशु यद्यपि मां के गर्भस्थ जल में रहता है और जल में वाहा प्रभावों का असर कम रहता है, लेकिन जन्म लेते ही उस पर ग्रह-नक्षत्रों तथा वाह्य प्रभावों का असर तेजी से पड़ने लगता है. जन्म लेते शिशु का शरीर इतना कोमल होता। है कि बाह्य प्रभाव उस पर अधिक असर डालते हैं. इसी से कुंडली का अध्ययन कर ज्योतिषी फाप्लादेश करता है.
ज्योतिष विद्या के देवता ब्रह्मा
हर युग में ज्योतिष के विशेषज्ञों की भरमार रही है. वास्तव में नारद पुराण के अनुसार ज्योतिष के देवता ब्रह्मा जी है. जिसका वर्णन सनंदन त्रऋषि करते हुए बताते हैं कि ज्योतिष विद्या में चार लाख श्लोक और तीन स्कंध हैं. कुछ स्थानों पर पांच स्कंधों का उल्लेख किया गया है, जिसमें सिद्धांत, होरा, संहिता, स्वर एवं सामुद्रिक शास्त्र हैं, सिद्धांत को गणित एवं होरा को जातक कहा जाता है. इसके अलावा ज्योतिष में देश, दिशा और जन्म काल को शामिल किया गया है.
त्रेतायुग में उस वक्त भी ज्योतिष विद्या के जरिये जामवंत जी ने हनुमान जी की कुंडली देखी और उनसे ‘कहति रीछपति सुन हनुमाना, का चुप साधि राहु हनुमाना’ काप, कुंडली के ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन के बाद जामवंत समझ गये कि सीता जी का पता हनुमान जी ही लगा सकते हैं.
ऐसी ही स्थिति द्वापर में
महान ज्योतिषी ओकुष्ण युद्ध के मैदान से विमुख होते अर्जुन की पूरी कुंडली बांच दी और किन ग्रहों के प्रभाव से अर्जुन विषादग्रस्त है और उसका क्या निराकरण किया जाये, ताकि आतताई दुर्योधन का वध हो सके, उसका पूरा उपक्रम श्रीकृष्ण ने किया. विराट रूप दिखाने का मतलब हो अर्जुन की कुंडली का फलादेश बताना है.
दरअसल, मनुष्य दुनिया भर के बारे में तो अनेकानेक माध्यमों से जानकारी हासिल कर लेता है, लेकिन खुद अपनी चेतना शक्ति को नहीं जान पाता. यदि कोई खुद अपने पंचभौतिक महल (शरीर) में विद्यमान ब्रह्म अंश की जान ले, ती वह सबसे बड़ा ज्योतिषी स्वेव हो जायेगा. खुद अपनी कुंडली जानने के लिए कुंडलिनी शक्ति जागृत करनी पड़ती है. इस तरह यदि सच में देखा जाये, तो कुंडलिनी शक्ति का जागरण ही कुंडली है,
राशियों का प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियों का उल्लेख है. इंसान के जन्म तिथि, समय और स्थान के अनुसार कुंडली बनायी जाती है और उसी के अनुसार फलादेश किया जाता है, राशियां तो कुल 12 ही हैं और मनुष्य की संख्या अरबों में है. ऐसे में कैसे संभव है कि किसी एक राशि का फरलादेश किया जाये, तो उस राशि की कुंडली वाले हर शख्स के साथ एक तरह का परिणाम घटित हो? ऐसी स्थिति में राशियों के फलादेश को लेकर संशय बना रहता है.
इसलिए ज्योतिष के आधार पर राशियों के फलादेश से अलग हटकर यदि इसी मानव शरीर की संरचना के अनुसार भी इसका अध्ययन किया जाना चाहिए, शरीर विज्ञान के अनुसार हर व्यक्ति के मस्तिष्क में 12 नर्क्स (नसे) होती है. इन्हीं नर्स (नसों) से इंसानी शरीर संचालित होता है. हर नव्से (नस) की अलग-अलग भूमिका होती है.
किसी नव्से से दृष्टि, किसी से श्रवण,
किसी से स्वाद आदि के साथ नित्व और हर पल होने वाली हर गतिविधियां नियंत्रित होती हैं. किसी खास नवस में कोई समस्या आ जाती है, तो उससे संचालित क्रिया प्रभावित होती है. शरीर विज्ञान के इस व्यवस्था पर मनन किया जाये, तो याही द्वादश ज्योतिलिंग भी है, जिसका उल्लेख तीर्थ स्थलों के रूप में किया गया है.
वास्तव में मस्तिष्क में विद्यमान ये नम्र मनुष्य जीवन को तृप्त करने वाला केंद्र बिंदु हैं. इसे ही योग, ध्यान और प्राणायाम तथा समुचित आहार-विहार से उत्तम बनाये रखने के निवम बताये गये हैं, जिन्हें अष्टांग योग कहा जाता है.
राशियों के नाम को भी देखा जाये तो बारह राशियों में क्रमशः मेष वृष, मिथुन कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, और मीन हैं. कुछ जानवरों के नाम हैं, तो कुछ मनुष्य की खुद को प्रवृत्तियों से जुड़े नाम है. इनमें मिथुन, कन्या, तुला, धनु, कुंभ राशियां मानसिक प्रभावों को परिलक्षित करती हैं.
मिधुन को आत्मिक जगत के योग-चक्रों के आपसी मिलन, कन्या कोमल प्रवृत्तियों, तुला नौर- शीर विवेक के उन्नयन, धनु कुविचारों पर नियंत्रण एवं कुंभ शरीर रूपी घड़े को उत्तम बनाने की विधि से मेल खाती राशियां हैं, तो शेष सात राशियां पशुवत प्रवृत्तियों की सूचक राशियां हैं. मनुष्य भी पशु समान ही है. उसमें पंच ज्ञानेंद्रियों के बल पर चिंतन की क्षमता न होती तो वह भी जानवरों की तरह ही जीवन व्यतीत करता. अतः राशियों के प्रभावों को आंतरिक प्रभाव मानना चाहिए,
ग्रहों का भी होता है मंत्रिमंडल
ज्योतिष सारूत्र में ग्रहों का भी मंत्रिमंडल ज्यो होता है और किस ग्रह को कौन-सा मंत्रालय दिया जायेगा, इसका भी समुचित निर्धारण किया गया है. पदों के बंटवारे में राजा का पद किसे दिया जायेगा, यह सुनिश्चित किया गया है. सौर वर्ष के अनुसार, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जो वार (दिन) होता है, वह दिन चंद्र वर्ष का सम्राट (राजा) होता है. मसलन संवत 2082 (सन् 2025) में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार, 30 मार्च को है. अतः इस वर्ष का राजा रवि होगा.
दूसरा महत्वपूर्ण विभाग मंत्री का होता है.
सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के बार (दिन) होगा, वह वार सेनापति (मंत्री) होता है, तीसरा महत्वपूर्ण विभाग अनाज आदि का है. इसे पंचांग में सस्य (घान्य) विभाग कहा गया है. कर्क राशि की संक्रांति के समय जी वार (दिन) होता है, वह दिन कृषि का अधिपति होता है. यदि इस वर्ष में राजा सूर्य होता है, तो मिलाजुला शुभ और दोनों प्रकार के फल सभी राशियों में मिलते हैं.
संवत 2082 में ऐसा ही है. इस वर्ष का अधिपति सूर्य है.
अंतः घर से लेकर राष्ट्र और परराष्ट्र तक मिलाजुला प्रभाव रहेगा. वहीं यदि चंद्रमा राजा होता है, तो शुभता का पलड़ा भारी होता है, जबकि मंगल के अधिपति होने पर अनिष्ट होता है. बुध, गुरु और शुक्र के अधिपति होने पर शुभ फल ही मिलते हैं, जबकि शनि के अधिपति होने पर अशुभ स्थितियों आती हैं.
इसी के साथ शुभ तथा अशुभ का निर्धारण ज्योतिषी प्रायः
सूर्य, चंद्रमा के रंग-रूप को देखकर भी फलादेश करते हैं. इसके अतिरिक्त ग्रहों की चाल से ज्योतिषी निधर्धारित करते हैं, वैयक्तिक और समष्टि में उसका क्या प्रभाव पड़ेगा.
ज्योतिष में अन्य विभागों के बंटवारे का क्रम निर्धारित है. इस तरह ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान हासिल करने के लिए ज्योतिषी को खुद खुद अपनी कुंडलिनी जागृत करनी पड़ती है तब कहीं जाकर वह दूसरों की कुंडली का फालादेश करने में सक्षम हो पाला है.
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